Saturday, April 27, 2024

जब राज्यपाल ने फारूक से कहा, तैयारी शुरू कर दो

1990 के दशक में पाकिस्तान समर्थित दो आतंकवादी संगठनों में कश्मीर में वर्चस्व की लड़ाई शुरू हो गई थी। इनमें एक आजादी गुट था तो दूसरा जिहादी। आजादी गुट जम्मू-कश्मीर लिब्रेशन फ्रंट (जेकेएलएफ) को जिहादी संगठन हिजबुल मुजाहिदीन (एचएम) से कड़ी चुनौती का सामना करना पड़ रहा था। 1996 में श्रीनगर में हजरतबल की घटना के बाद जेकेएलएफ ने अंतराष्ट्रीय स्तर पर सनसनी फैला दी थी। इसके बाद जम्मू-कश्मीर पुलिस ने उसके खिलाफ विशेष अभियान शुरू किए। इसके लिए स्पेशल आपरेशन ग्रुप बनाए गए। इन्हीं विशेष अभियानों पर अश्विनी भटनागर और आरसी गंजू की किताब ” आपरेशन खात्मा ” कई खुलासे करती है।  

“27 मार्च (1996) की सुबह जम्मू कश्मीर पुलिस के स्पेशल ऑपरेशन ग्रुप के चीफ फारूक खान को दिल्ली पहुंचते ही राज्यपाल केवी कृष्णाराव ने विशेष जहाज भेज श्रीनगर बुला लिया था। राज्यपाल कृष्णाराव आते ही कहा, ‘जेकेएलएफ चीफ शबीर सिद्दकी और उसके आदमी हजरतबल दरगाह से साथ की इमारत में मूव कर गए हैं। उनके पास हथियार हैं। हम उनसे लगातार उनकी मांगों के बारे में पूछ रहे हैं। अभी वे दरगाह से कुछ ही दूरी पर हैं। मैं और डीजी साहब (एमएन सबरवाल) चाहते हैं कि एसओजी स्थिति को देखते हुए कोई कारगर योजना बनाए, यद्यपि स्थिति लगातार बदल रही है, इसलिए सभी संभावित स्थितियों को ध्यान में रखकर ही प्लान बने।’ राव ने सबरवाल की ओर देखा और जोर देकर कहा, ‘किसी भी स्थिति से निपटने को हमें हमला दल की जरूरत होगी। हम अपनी ओर से हमला नहीं करेंगे। हम स्थिति का शांतिपूर्ण समाधान चाहते हैं। हजरतबल एक बहुत ही संवेदनशील मामला है।’

‘मैं समझ गया सर।’ फारूक ने इतना ही कहा।…डीजीपी सबरवाल ने कहा, ‘सर, हमारे पास इंटेलिजेंस इनपुट है कि शबीर फिर से अपने साथियों को हजरतबल में भेज सकता है।’ …राज्यपाल राव ने भंवैं सिकोड़ीं।…‘हमने सिग्नल पकड़ा है, …शब्बीर से कहा गया है कि अल्लाह की हिफाजत में लौटो, जिसका मतलब शायद यही है कि दरगाह में लौटो।

फारूक खान ने अपने आदमियों को तत्काल बुलाया। उन्होंने हथियारों पर अतिरिक्त ध्यान दिया। एक-47 के अलावा उसके सभी आदमियों के पास अन्य हथियार भी थे। ….यह पहला मौका था जब एसओजी को मोर्टार दिए गए थे। सीआरपीएफ की एक पलाटून को सुरेंद्रन की कमान में तैयार रहने का हुक्म दिया जा चुका था। ..फारूक ने पुलिस हेडक्वार्टर से अपने सैकेंड-इन-कमान आरके जाला से संपर्क किया ताकि अधिकारियों को तैयारियों के बारे में बताया जा सके।

सबरवाल ने देखते ही कहा, ‘बहुत अच्छा। अंदर जाने के लिए आपको कितना पहले कहना होगा ?..फारूक ने जवाब दिया, ‘तत्काल सर। मैं समझता हूं कि यह अभी होना चाहिए।’ ..सूरी ने बात काटी, ‘इसमें बहुत जोखिम है।’

‘हां, इसमें जोखिम है मगर यह उससे कम है, जो इन आतंकियों के वहां सिक्का जमा लेने से है। हमें अंतिम रेखा खींचनी होगी…।’ फारूक की आवाज पहले से तेज थी।

‘यह बहुत बुरा है कि उन्होंने आत्मसमर्पण नहीं किया।’ फारूक ने इशारा किया, ‘जवानों से इमारत के अंदर की तरफ बढऩे को कहो।’..जाला तेजी से वापस आए। उसने तत्काल रिपोर्ट किया, ‘हमारे जवान इस बात से ज्यादा खुश नहीं हैं..उनका मानना है कि ऐसा कर हम दरगाह में कोहराम मचा देंगे…उनकी धार्मिक संवेदनाएं हैं और इसलिए दरगाह परिसर में कोई कार्रवाई करने में हिचक रहे हैं।..फारूक खुद दौडक़र एसओजी ग्रुप के पास पहुंच गये, जो इमारत के ठीक सामने था, ‘यह मैं क्या सुन रहा हूं?’ वह एकदम से फट पड़े, ‘मेरे जवान चूजे कैसे बन गए? वे इसलिए हिचक रहे हैं, क्योंकि वे मुसलमान हैं और दरगाह उनके लिए पवित्र स्थान है? ध्यान से मेरी बात सुनो, पहली बात तो यह कि हम दरगाह में घुसने नहीं जा रहे… हम सिर्फ वहां छुपे बेवकूफ आतंकवादियों पर फायर करेंगे… और मैं भी मुसलमान हूं और अल्लाह मेरा रक्षक है…मगर इस वक्त दरगाह में वे लोग घुसे हैं जिनका इसकी पवित्रता में कोई विश्वास नहीं है…मस्जिद के अंदर लोगों को बंधक बनाकर उन्होंने गैर इस्लामिक काम किया है। अगर मेरा अपने दीन में विश्वास है तो वे अपराधी हैं…यह दरगाह पवित्र रहे…इसलिए यह हर मुसलमान का फर्ज है कि इस गंदगी को साफ किया जाए। आप लोगों ने पुलिस की वर्दी पहनी है, अपनी वर्दी की इज्जत करो… यह तुम्हें ऐसे ही अपराधियों से अपने समाज को बचाने के लिए दी गई है…हम किसी को भी कश्मीर को नीचा नहीं दिखाने देंगे… दरगाह को सुरक्षित रखने के अपने फर्ज से हम नहीं भाग सकते…।’ तभी गोली चली। यह फारूक को बाल बराबर की दूरी से छूकर निकल गई। पुलिस वाले गुस्से से भर गए। उन्होंने दौडक़र अपनी पोजिशन संभाली और जवाब में भारी फायरिंग शुरू कर दी।

ऑपरेशन खात्मा शुरू हो चुका था।”

अश्विनि भटनागर अनुभवी पत्रकार है जिन्होंने द त्रिब्युन, टाइम्स ऑफ इंडिया जैसे अखबारो में उच्च पदो पर काम किया है।उन्होने अब तक 15 किताबे लिखी हैं।उनकी नवीनतम किताब “ऑपरेशन ख़ात्मा” से ये अंश लिए गए हैं। 2020 मे उनकी किताब द लोटस एयरस को टाटा लिट सम्मान के लिए नोमिनेट किया गया था।उनके कॉलम हिन्दी अखबारो में नियमित रूप से छपते रहते हैं ।वो लघु फ़िल्मे भी बनाते हैं। 

Ashwini Bhatnagar
Ashwini Bhatnagar
Ashwini Bhatnagar is an experienced journalist who has held responsible editorial positions in The Tribune, Times of India, Sunday Mail, The Pioneer. He has written 14 non fiction books. His latest, The Lotus Years, was nominated for the prestigious Tata Lit Live Best Book of the Year, 2020 award. He's a columnist and documentary film maker, too.

Read More

महामहिम, तेल डाले रहिए और लोकतंत्र को बजने दीजिए

अपने शाल का पल्लू ठीक करते हुए वे यकायक ठिठक गए थे। ड्रेस डिजाइनर ने आदमकद आईने में उनकी चढ़ी हुई भृकुटि देखी और...