Friday, April 19, 2024

राजीव गांधी की शवयात्रा: मेरी देखी, मेरी कही

राजीव गांधी ने 20 मई,1991 को राजधानी दिल्ली के निर्माण भवन में अपना लोकसभा चुनाव के लिए वोट डाला था। अब भी देश को वह तस्वीर याद है, जब राजेश खन्ना कांग्रेस अध्यक्ष राजीव गांधी और सोनिया गांधी को उनका वोट डलवाने में मदद कर रहे हैं। राजेश खन्ना वह चुनाव नई दिल्ली सीट से लाल कृष्ण आडवाणी के खिलाफ लड़ रहे थे। वह राजधानी में राजीव गांधी की अंतिम तस्वीर थी। उसके अगले ही दिन यानी 21 मई, 1991 को उनकी एक बम धमाके में हत्या कर दी गई थी। 

अपने अखबार में रात की शिफ्ट को खत्म करने के बाद हम लोग घर निकलने की तैयारी कर रहे थे। रात के एक बजे होंगे कि अचानक से पीटीआई की मशीन से अजीब सी आवाजें आने लगीं। पता चला राजीव गांधी धमाके में मारे गए। घटना तमिलनाडू के श्रीपेरम्बदूबर की थी। इस जगह का पहले कभी नाम भी नहींसुना था। पीटीआई ने देर रात को एक फोटो रीलिज की। फोटो राजीव गांधी के धमाके से छलनी हो गए शरीर की थी। उसके आसपास कुछ और शव भी पड़े। राजीव गांधी के मृत शरीर को तमिलनाडू कांग्रेस के नेता जी.के. मूपनार और जयंती नटराजन भय और अविश्वास के मिले-जुले भाव से देख रहे थे। राजीव गांधी की मौत से सारा देश गमगीन था।

अगले दिन सोनिया गांधी,प्रियंका गांधी और परिवार के मित्र सुमन दूबे मद्रास से राजीव गांधी के शव को लेकर दिल्ली आ गए थे। तय हुआ कि उनका अंतिम संस्कार 24 मई, 1991 को होगा। राजीव गांधी के शव को जनता के दर्शनों केलिए तीन मूर्ति भवन में रखा गया था। इधर से ही उनकी शव यात्रा को निकलना था। यहां से ही उनके नाना पंडित नेहरु, मां इंदिरा गांधी और पिता फिरोज गांधी की भी शव यात्रा निकली थीं। उस दिन दिल्ली में गर्मी का कहर टूट रहा था। इसके बावजूद सड़कों पर भारी भीड़ थी। 24 मई से पहले ही राहुल गांधी  अमेरिका से वापस भारत आ चुके थे। राहुल उन दिनों अमेरिका में ही पढ़ते थे। राजधानी में शांतिस्थल के करीब शक्तिस्थल पर अंत्येष्टि की तैयारियां पूरी हो गईं थी। राजीव गांधी की शव यात्रा लुटियंस दिल्ली से निकलकर आईटीओ होते हुए अपने गंतव्य पर पहुंच रही थी। सड़क के दोनों तरफ अपार जनसमूह अपने अजीज नेता के अंतिम दर्शनों के लिए खड़ा था। इनमें युवाओं की भागेदारी कमाल की थी। राजीव गांधी को देश बहुत चाहता था। उन पर करप्शन के लाख आरोप लगे पर उनकी एक साफ छवि वाले इंसान की इमेज थी।   

अंत्येष्टि स्थल पर पहले से ही दुनियाभर से आई गणमान्य हस्तियां मौजूद थीं। पाकिस्तान के प्रधानमंत्री नवाज शरीफ, उनकी प्रतिद्धंद्धी बेनजीर भुट्टो, बांग्लादेश की प्रधानमंत्री बेगम खालिदा जिया, फिलीस्तीन मुक्ति संगठन के प्रमुख यासर अराफात वगैरह मुरझाए चेहरों के साथ बैठे थे। अराफात तो बार-बार फफक कर रो भी पड़ते थे। राजीव गांधी विशव नेता के रूप में उभर रहे थे।देश के सभी प्रमुख नेता जैसे अटल बिहारी वाजपेयी, पी.वी.नरसिंह राव, ज्योति बसु, लाल कृष्ण आडवाणी, सुनील दत्त  भी अंत्येष्टि स्थल पर मौजूद थे। सभी गमगीन थे। राजेश खन्ना के तो आंसू थम ही नहीं रहे थे।

और अब वक्त आ गया राजीव गांधी को अलविदा कहने का। शाम सवा पांच बजे अपार जनसमूह के सामने अंत्येष्टि वैदिक मंत्रोचार के बीच शुरू हुई। सोनिया गांधी काला चश्मा पहने अपने पुत्रराहुल को अपने पिता की चिता पर मुखाग्नि देने के कठोर काम को सही प्रकार से करवा रहीं थीं। जो भी उस मंजर को देख रहा था, उसका कलेजा फट रहा था। अमिताभ बच्चन भी वहां पर थे। तब तक उनके गांधी परिवार से मधुर संबंध थे। अंत्येष्टि के दौरान बनारस से खासतौर पर आए पंडित गणपत राय राहुल गांधी और अमिताभ बच्चन को बीच-बीच में कुछ समझा रहे थे।करीब डेढ़ घंटे तक चली अंत्येष्टि।  

कहने वाले कहते हैं कि इंदिरा गांधी और संजय गांधी की शव यात्राओं में भी जनता की भागेदारी बहुत थी। पर राजीव गांधी की शवयात्रा को बहुत बड़ी शवयात्रा के रूप में याद किया जाता है। हालांकि इस लिहाज से दिल्ली में महात्मा गांधी से बड़ी शव यात्रा किसी ने नहीं देखी। तब तो कहते हैं कि सारी दिल्ली और आसपास के शहरों के लोग बापू के अंतिम दर्शनों के लिए सड़कों से लेकर राजघाट पहुंच गए थे। सैकड़ों लोग अपने घरों से अंत्येष्टि के लिए घी लेकर आए थे। हजारों ने अपने सिर मुंडवाए थे। पता ही नहीं चला कि राजीव गांधी को संसार से विदा हुए तीस साल गुजर गए।

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