कौन महेंद्र सिंह धोनी को ड्रेसिंग रूम में नहीं चाहेगा। रवि शास्त्री उनके दीवाने हैं। विराट कोहली अगर अभी भी क्रिकेट में हैं तो उसमें माही का बड़ा योगदान रहा है। अगर माही कोहली तो २०११ में पर्थ टेस्ट ना खिलाते, और उनकी जगह रोहित शर्मा को ले लेते तो विराट का करीयर काफ़ी पीछे चला जाता। कोहली अपनी टीम चुनें; शास्त्री अपनी तकनीकी ज्ञान दें और धोनी खिलाड़ियों में आत्मविश्वास भरें। धोनी ऐसे प्रभावशाली हैं की वो अगर किसी युवा से कहें की तुम तालिबानी आंतंकवादी से मिल आओ तो उसे लगे गा की वो किसी साधु से मिलने जा रहा है।
पर ऐसा नहीं है की धोनी जैसे दिखते हैं वैसे ही हैं। युवराज सिंह और गौतम गम्भीर के पास काफ़ी कुछ हैं उनके विरोध में बोलने को। एक मजूदा अंतर्रष्ट्रिय एंपायर ने मुझे नाश्ता करते हुए कहा था कि धोनी काफ़ी मोटी मोटी गाली भी मैदान पे देते हैं बस स्टम्प माइक उसको पकड़ नहीं पाता।
पर ये मतलब क़तई नहीं है की धोनी धूर्त हैं। उन्हें अगर सौरव गांगुली को २००८ के ऑस्ट्रेल्या दौरे पे एक दिवसेय प्रतियोगता से निकलना था तो उन्होंने फट से निर्णय लिया। बाद में राहुल द्रविड़ भी उनकी तलवार का शिकार बने। हम पत्रकारों को लगा की टीम रौंद दी जाएगी। पर टीम ने त्रेकोर्रणिय शृंखला जीती। ये बात दूसरी है की दोनो फ़ाइनल्ज़ में रन सचिन तेंदुलकर के ११७ और ९१ ही काम आए, ना की किसी युवा के।
धोनी टी२० के प्रयाएवाची हैं। वो श्रदलयों के वैटिकन हैं। वो बढ़ती उमर के मैथ्यू हेडन, शेन वॉट्सॉन और ड्वॉन ब्रावो का भी उतना ही अच्छा इस्तमाल करते हैं जैसे वो किसी नए दीपक चहार या अश्विन का करते हैं। टीम के संचालन में निपूर्ण हैं। आख़री गेंद पे छक्का मारना हो तो कोई धोनी से सीखे। इसीलिए हर कोई उनके आगे नतमस्तक है।
पर धोनी का चयन एक मर्गदर्शक के रूप में इतना सीधा साधा नहीं है जैसा दिखता है। हो सकता हैं कि उनकी भी तमन्ना हो की भारत एक बार फिर किसी ट्रोफ़ी को अपने क़ब्ज़े में ले जो उसने क़रीब आठ साल से नहीं जीती है। हो सकता है भारतीय क्रिकेट बोर्ड, कोहली और शास्त्री, और धोनी इन सभी का लक्ष्य एक ही हो। पर सचाई ये भी है की कोहली की मन मानी बोर्ड को भाती नहीं है। अगर टीम टी २० विश्व कप जीत जाती है तो श्रेय बटेगा, सिर्फ़ कोहली और शास्त्री का नहीं होगा। अगर टीम हार जाती है तो शास्त्री को दरवाज़ा दिखाने में बोर्ड कोई हिचकिचाहट नहीं दिखाएगा। हर कोई boss अपने छेत्र में अपना दबदबा बना के रखना चाहता है। जो कोहली होने नहीं दे रहे हैं। धोनी को मर्गदर्शक बनाना एक तरह से कोहली पे लगाम लगाने का प्रयत्न है। शास्त्री को जाता देख के भी बोर्ड को संतोष मिलेगा। आख़िर बोर्ड की चॉस कुम्बले थे, ना की कोहली। पर कोहली ने अपनी चलायी और ऐसी चलायी की चार साल खिच गए। अब इस समीकरण को उखाड़ फेकने में माही का चयन एक पहली कड़ी है।