Tuesday, February 18, 2025

महामहिम, तेल डाले रहिए और लोकतंत्र को बजने दीजिए

अपने शाल का पल्लू ठीक करते हुए वे यकायक ठिठक गए थे। ड्रेस डिजाइनर ने आदमकद आईने में उनकी चढ़ी हुई भृकुटि देखी और थोड़ा हट कर खड़े अनन्य सेवक को इशारा किया था। यह सुबह-सुबह कौन रोए जा रहा है? महामहिम ने कुछ झल्ला कर पूछा था। कोई नहीं साहिब जी, आप आराम से तैयार हों… यह रोना-धोना तो चलता रहता है। मैं देख लूंगा।

महामहिम ने शीशे के आगे पोज करते हुए धीमे से हूं कहा। सेवक बोलने लगा, रोने का बड़ा शौक है न इन बेशर्मों को, अब देखिएगा, मैं इनको ऐसा रुलाऊंगा कि इनकी सात पुश्तें अपने गले में छेद करा कर पैदा होंगी। अनन्य सेवक ने ठहाका लगाया था। महामहिम ने फिर हूं किया और अपनी नई पोशाक पर गंभीरता से विचार करने में जुट गए थे।

महामहिम बेहद विचारशील मेधा संपन्न व्यक्ति थे। दिन में छह-सात बार वे अपने जीवन के सबसे जटिल मुद्दे पर एकटक दृष्टि से महीन विचार करते थे। उन्होंने एक बार एक अंतरराष्ट्रीय सम्मलेन में मुस्कराते हुए विभिन्न देशों के नायकों को अपनी महीनी का कारण बताया भी था। उन्होंने कहा था कि बाल्यकाल में गांव की आटे की चक्की से वे बेहद प्रभावित हुए थे।

चक्की में मोटा अनाज डाला जाता था और वह उसको इतना महीन पीस देती थी कि बस कुछ पूछो मत। भरूच से लेकर बाल्टीमोर तक और संत नगर से सैन फ्रांसिस्को तक लोग इस महीन आटे की मांग पिज्जा, बर्गर और पता नहीं कौन-कौन से विदेशी व्यंजन बनाने के लिए करते थे। हमारी चक्की का, उन्होंने गर्व से कहा था, पूरे विश्व में डंका बजता था। मैं रोज चक्की पर जाता था और बार-बार आटे पर हाथ फेर कर उसकी महीनी का मजा लेता था।

मन करता था, मैं आटे की चक्की हो जाऊं। चक्की तो मैं नहीं बन सकता था, पर महीनी का संकल्प मैंने जरूर ले लिया था, जिसके फलस्वरूप मेरा दिमाग चक्की हो गया है और मेरे विचार आटा हो गए हैं। मैं अगर हल्की-सी भी फूंक मारता हूं तो मेरा आटा हर तरफ फैल जाता है।

वैसे वास्तव में महामहिम कपड़े बदलते वक्त चक्की हो जाते थे और बड़ी महीनी से उन पर विचार करते थे। अक्सर एक पोशाक संवारने में उनको घंटा भर लग जाता था। पर इसमें कोई बड़ी बात नहीं थी। कोई भी समर्पित व्यक्ति अपनी चक्की को बिना पूरा पीसे हुए नहीं छोड़ता है। पीसिंग ऐंड पीसिंग वाले योग का सुख विलक्षण व्यक्तित्व वाला ही जान सकता है, कोई ऐरा गैरा उठाईगीर नहीं।

खैर, पोशाक को महीन नजर से वे देख ही रहे थे कि रुदन और तेज हो गया था। महामहिम ने अनन्य सेवक को टेढ़ी नजर से देखा था। सेवक फौरन हरकत में आ गया। वह बड़बड़ाने लगा था, लगता है उन्होंने मेरी बात सुनी नहीं थी। मैं जरा अपने तरीके से उनको शांत करा कर आता हूं। महामहिम ने शाल का पल्ला झटका था। जी, मैं समझ गया, सेवक ने शरारती अंदाज में कहा और जल्दी से कमरे से निकल गया था।

महामहिम ने डिजाइनर को लाड़ से देखा। मैडम जी, मूड खराब हो गया है। यह पोशाक मूड के साथ मेल नहीं खा रही है। मैडम फरमाइश सुन कर कुछ हड़बड़ा गई थीं। सर, अब क्या पहनने का मूड है। बताइए सर, मैं फौरन ले आती हूं। महामहिम कुछ पल मैडम को निहारते रहे, जैसे वे कोई भव्य पोशाक हो और फिर अचानक बुदबुदाए, कुछ जोगिया-सा मन हो रहा है। रुदन विरक्ति जगा गया है।

मैं उनमें से नहीं हूं कि मन की बात मन में रखूं। मैं उसको तुरंत शरीर पर धारण कर लेता हूं। जब मन जोगिया हो गया है, तो वस्त्र भी जोगिया होने चाहिए। जी सर, मैडम जी ने कहा था और पोशाक लाने के लिए दौड़ पड़ी थीं। कुछ हजार वस्त्रों में से सही रंग और स्टाइलिश कट के कपड़े ढूंढ़ना कोई हंसी-खेल नहीं था।

अनन्य सेवक महामहिम की छाया में आ खड़ा हुआ था। क्या किया? उन्होंने पूछा। सरकार लोकतंत्र की लाठी की मार आवाज जरूर करती है, पर कमर भी ठीक तरीके से तोड़ती है, सेवक हंसा था। वैसे, एक और कारगर उपाय है। वो कहा जाता है न कि कान में तेल डालके बैठ जाओ?

बस, महामहिम लोकतंत्र के लिए यह एक नुस्खा काफी है। तेल डाले रहिए और लोकतंत्र को बजने दीजिए। महामहिम अनन्य सेवक की बात पर खूब हंसे थे। यार, तेरा जवाब नहीं है, उन्होंने उसकी पीठ पर हाथ मारा था, वाट्स ऐप्प यूनिवर्सिटी से ज्ञान लेकर तूने एंटायर पोलिटिकल साइंस बदल डाली है। वाह, क्या कहा है तूने- तेल डालो, लोकतंत्र चलाओ। चाणक्य टाइप लोग आउट ऑफ डेट हो गए हैं। तू कुछ लिख।

महामहिम से अपनी तारीफ सुन कर सेवक इतना गदगद हो गया था कि उसके आंसू निकल आए थे। सर… उसने बोलने की कोशिश की थी। अरे चुप, महामहिम ने डांटा था, यू नो आय हेट टीयर्स। सेवक के आंसू तुरंत बंद हो गए थे और बांछे खिल गई थीं।

डिजाइनर मैडम तभी हांफती-कांपती प्रकट हुईं। महामहिम ने दुलार से कहा, मैडम जी, जो पहने हैं, ठीक है। अब नहीं बदलेंगे। पर आप जल्दी से जाइए और एक कटोरी भर कर सरसों का तेल ले आइए। मैडम बात सुन कर इतना घबरा गईं कि उनके हाथ से कपड़े छूट गए थे। सर…? वो हकलाने लगी थी। महामहिम मुस्कराए। जोगिया वाला प्लान कैंसिल हो गया है। उन्होंने अपने कान खुजाए और कहा, तेल ले आओ, लोकतंत्र चलाना है मुझे।

साभार: जनसत्ता

अश्विनि भटनागर अनुभवी पत्रकार है जिन्होंने द त्रिब्युन, टाइम्स ऑफ इंडिया जैसे अखबारो में उच्च पदो पर काम किया है.  उन्होने अब तक 14 किताबे लिखी हैं . 2020 मे उन की किताब द लोटस एयरस को टाटा लिट सम्मान के लिए नोमिनेट किया गया था. उनके कॉलम  हिन्दी अखबारो में नियमित रूप से छपते रहते हैं. वो लघु फ़िल्मे भी बनाते हैं.

Ashwini Bhatnagar
Ashwini Bhatnagar
Ashwini Bhatnagar is an experienced journalist who has held responsible editorial positions in The Tribune, Times of India, Sunday Mail, The Pioneer. He has written 14 non fiction books. His latest, The Lotus Years, was nominated for the prestigious Tata Lit Live Best Book of the Year, 2020 award. He's a columnist and documentary film maker, too.

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