Friday, March 29, 2024

अलविदा,दिल्ली को इंडिया हैबिटाट सेंटर और निफ्ट देने वाले प्रो. दोषी

प्रख्यात आर्किटेक्ट प्रो. बाल कृष्ण दोषी ने 1980 के दशक के अंतिम सालों में इंडिया हैबिटाट सेंटर (आईएचसी) और नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ फैशन टेक्नोलॉजी (निफ्ट) के डिजाइन तैयार किए थे। इन दोनों के डिजाइन अद्वितीय और अप्रतिम हैं। आईएचसी को प्रो. दोषी के अलावा जोसेफ स्टाइन और जय रत्न भल्ला ने मिलकर डिजाइन तैयार किया था। प्रो. दोषी के पहले किए गए काम से प्रभावित होकर सी.पी.कुकरेजा ने जवाहरलाल नेहरू यूनिवर्सिटी (जेएनयू) के हॉस्टल, स्टाफ क्वार्टर और दूसरी कई इमारतों को एक्सपोज ओपन ब्रिक्स की तर्ज पर डिजाइन किया था। उन्हीं दोषी जी का मंगलवार को अहमदाबाद में निधन हो गया। वे 95 वर्ष के थे।

प्रो. दोषी ने चंडीगढ़ के चीफ आर्किटेक्ट ली कार्बूजिए और प्रयोगधर्मी आर्किटेक्ट लुईस कान्ह के साथ भी काम किया। बेशक, इसलिए उनके काम में कार्बूजिए और कान्ह का असर झलकता है। आईएचसी की बिल्डिंग का निर्माण 1988 में चालू हुआ और 1993 में यह बनकर तैयार हो गई। इसकी बाहरी ईटों पर सीमेंट का लेप नहीं मिलता। सिर्फ इसकी चिनाई सीमेंट से हुई है। इससे यह कुछ हटकर और विशिष्ट नजर आती हैं। ये कार्बूजिए और कान्ह का भी स्टाइल था। 

“ मुझे याद है कि जब जेएनयू का डिजाइन बन रहा था तब सी.पी.कुकेरजा लगातार प्रो.दोषी की डिजाइन की जा चुकी इमारतों का अध्ययन कर रहे थे। कुकरेजा जी प्रो. दोषी के एक्सपोज ओपन ब्रिक्स के सिद्दांत से इतने प्रभावित हुए कि उन्होंने जेएनयू की इमारतों के ऊपर सीमेंट का लेप नहीं करवाया,” यह जानकारी कुकरेजा जी के सहयोगी रहे राजधानी के वरिष्ठ आर्किटेक्ट बख्शीश सिंह देते हैं।

 उन्हें कहां मिले थे खंडहर

प्रो. दोषी ने नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ फैशन टेक्नोलॉजी (निफ्ट) निफ्ट की बिल्डिंग में कक्षाओं, प्रशासनिक ब्लॉक और हॉस्टल को अलग-अलग भागों में बांटा। यह बिल्डिंग 1990 के दशक के शुरू में बन गई थी। इसमें तब वाटर हारवेस्टिंग की व्यवस्था की गई थी जब यह विचार नया-नया सामने आ रहा था।। प्रो. दोषी ने एक बार कहा था कि जब उन्हें 1985 में निफ्ट को डिजाइन करने का काम मिला तो वह हौजखास में पैदल घूमे। तब वहां पर गुजरे दौर के खंडहर जगह-जगह बिखरे पड़े थे। आखिर यह सारा क्षेत्र कभी सुल्तान अलाउद्दीन ख़िलजी की राजधानी रहा था। यहां अब भी उस काल के बहुत से खंडहर और दूसरे अवशेष मिल जाते हैं। हौजखास में इतिहास और वर्तमान मिलते हैं।

प्रो.दोषी ने निफ्ट का डिजाइन जीवंत रखा। इधर उन्होंने अनेक बरामदें और गलियारे निकाले, जहां पर विद्यार्थी मिलते-जुलते रहें। चूंकि यह एक कला के संसार से जुड़े विद्यार्थियों का शिक्षण संस्थान है, तो उन्होंने इसमें कलात्मकता का पुट डाला है। मेन गेट के पास एक बावड़ी नुमा स्थान का स्पेस भी निकाल दिया। 

फिजाओं के झोंके

प्रो.दोषी ने चाहे आईएचसी का डिजाइन किया हो या निफ्ट का, उनकी इमारतों में सूर्य की रोशनी और ताजा हवा के झोंकें आते रहते हैं। उन्हें स्वतंत्र भारत का अति विशिष्ट आर्किटेक्ट माना जाता है। उन्होंने कई आर्किटेक्चर कॉलेजों मे पढ़ाया भी। अध्यापन उनके दिल के बेहद करीब रहा है। वे मानते रहे हैं कि युवाओं के साथ वक्त बिताने से, उन्हें बहुत नए आइडिया मिलते हैं। जाहिर है कि यह उनकी विनम्रता ही थी।

अगर फिर से आईएचसी पर लौटे तो इसकी दिवारों में आप हरी, लाल और ग्रे रंगों की सेरेमिक टाइलें देखते हैं। इनसे आईएचसी को एक नया रूप मिलता है और चारों तरफ ईंटों को देखने से पैदा होने वाली नीरसता भी भंग होती है। जब आईएचसी का निर्माण हो रहा था तब राजधानी की शुष्क जलवायु को जेहन में रखा गया था। इसलिए यहां की लैंड स्केपिंग पर बहुत फोकस दिया गया। आपको यहां चप्पे-चप्पे पर हरियाली मिलेगी। जाहिर है, गर्मी के मौसम में हरियाली निश्चित रूप से राहत देती है।

 खिड़कियोंकेलिएपर्याप्तस्पेस

प्रो. दोषी अपनी इमारतों में खिड़कियों के लिए बहुत बड़ा सा स्पेस रखते थे। यह सोच-विचार करने के बाद लिया गया फैसला था। इसके चलते उनके डिजाइन की गई इमारतें दिन में सूरज के प्रकाश से जगमग रहती हैं। वे अपनी इमारतों  के पशिचमी भाग को लगभग बंद सा रखते थे। पश्चिम भाग को बंद रखने से यह तब बच जाती है जब सूरज दिन में 12 से दो बजे तक आग उगल रहा होता है। राजधानी में प्रो.दोषी ने संभवत: दो ही इमारतों का डिजाइन बनाकर अपनी प्रयोगधर्मिता को सिद्ध कर दिया। इन्हें बने हुए तीन दशक हो गए हैं, पर ये अब भी समकालीन और श्रेष्ठ लगती हैं।  एक बात और। प्रो. दोषी की सलाह के बाद मशहूर आर्किटेक्ट राज रावल ने 1972 में प्रगति मैदान में हॉल ऑफ नैशन्ज़ को डिजाइन किया था।

(The author is an eminent bi-lingual writer and columnist. He is based in New Delhi)

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