Thursday, April 25, 2024

खंबाटा वो उद्यमी जिन्होंने रसना को हमारे जीवन का एक अंश बनाया

अरीज पिरोजशॉ खंबाटा पर्दे के पीछे रहकर नई इबारत लिखने वाले सफल कारोबारी थे। उन्होंने मशहूर पेय पदार्थ रसना की मार्फत देश-दुनिया के करोड़ों लोगों का गला तर किया। उन्हीं अरीज पिरोजशॉ खंबाटा ने इस दुनिया को अलविदा कह दिया है। वे 85 वर्ष के थे। 

खंबाटा ने भारतीय उद्योग, व्यापार और समाज की सेवा के जरिए सामाजिक विकास में महत्वपूर्ण योगदान दिया। आज रसना की पहुंच 60 से अधिक देशों में है। बेशक,आज रसना दुनिया में सबसे बड़े पेय पदार्थ निर्माताओं में से एक है। 1970 में महंगी कीमतों पर बेचे जाने वाले सॉफ्ट ड्रिंक उत्पादों के विकल्प के रूप में रसना के किफायती पैकेट बनाए गए। अब  इसे देश के 18 लाख दुकानों पर बेचा जाता है। 80 और 90 के दशक में “I love you Rasna” कैंपेन ने इसे नई पहचान दी थी।  

यह कहना भूल होगी कि देश के शीतल पेय बाजार पर कोका-कोला और पेप्सिको का ही कब्जा है। इन्हें रसना  चुनौती देता है। जैसे-जैसे सूरज की तपिश बढ़ती है, जमीन तंदूर के समान गर्म हो जाती थी और लोगों के गले प्यास के मारे सूख जाते हैं, तब रसना सॉफ्ट ड्रिंक की दिग्गज कपनियों से पीछे नहीं रहता।

देश में शीतल पेय पदार्थ का कारोबार तेजी से जोर पकड़ रहा है लेकिन एक आम अमेरिकी की तुलना में भारतीय 15 सौ गुना शीतल पेय कम पीता है। शहरों में शीतल पेय की विविध वैरायटी मिलती है लेकिन गांव व छोटे शहरों में लोगों के पास पेय पदार्थ को लेकर कम ही विकल्प बचते हैं। 

ग्रीष्मऋतु में गांव के बाजार पर कब्जा जमाने को शीतलपेय कंपनियों में होड़ मच जाती है। भारत में प्रति व्यक्ति सालाना 6 लीटर शीतल पेय का उपभोग करता है। शीतल पेय बाजार में रसना का मार्केट शेयर भी ठीक-ठाक है। इसे बुलंदियों पर ले जाने में खंबाटा का कुशल नेतृत्व तो रहा ही। वे कहते थे कि रसना को भारत के हर गांव तक पहुंचाना है। बेशक, पाउडर से बनने वाले जूस के बाजार में विभिन्न स्वादों के साथ रसना की धाक है। रसना ने 1990 के दशक में नींबू पानी उत्पाद पेश किया था, जिसके करीब दो दशक बाद 2010 में पेप्सिको ने निंबूज और कोका कोला ने मिनट मेड नींबू फ्रेश के साथ इस श्रेणी में दस्तक दी थी।

संतरा और आम के सामान्य स्वादों के अलावा काला खट्टा, गुलाब, केसरी इलायची, खस, जलजीरा भी खासे लोकप्रिय उत्पाद हैं। 2000 के बाद रसना ने अमरूद, इलायची, तरबूज, मिश्रित फल और अनानास के स्वाद वाले उत्पाद बाजार में उतारे थे। करीब 600 करोड़ रुपये मूल्य के शीतल पेय पाउडर बाजार में रसना 85 फीसदी हिस्से पर काबिज है।

इस बीच, खंबाटा उन टाटा, गोदरेज, वाडिया सरीखे पारसी कारोबारियों में थे जो जीवनभर राष्ट्र निर्माण में लगे रहे। उन्होंने दशकों बिजनेस किया और उनका जीवन बेदाग रहा। उन पर कभी किसी ने कोई आरोप नहीं लगाया। ये कहना होगा कि पारसी उद्यमी आमतौर पर अपने काम से काम में मतलब रखते हैं। इसलिए उनका सब सम्मान करते हैं। खंबाटा ने अपने ग्रुप में मेरिट और महिला पेशेवरों को विशेष अवसर दिए। दरअसल पारसी समाज की तरफ से चलाए जाने वाले ग्रुप अलग तरह की नजीर पेश करते हैं। अब टाटा ग्रुप को ही लें। उसने अपनी इस तरह की छवि बनाई है, जिसके चलते उसे सिर्फ मुनाफा कमाने वाले ग्रुप के रूप में ही नहीं देखा जाता है। ये सामान्य बात तो नहीं है ।

 टाटा ग्रुप को भारत के विकास तथा प्रगति से जोड़कर देखा जाता है। नमक से स्टील का उत्पादन करने वाले और अपनी एयरलाइन चलाने वाले टाटा ग्रुप की 100 से अधिक छोटी बड़ी कंपनियां हैं। आमतौर पर टाटा ग्रप की कंपनियों की चर्चा होने लगती है तो टाटा स्टील, टाटा मोटर्स, वोल्टास, टाटा कंसलटेंसी सर्विसेज (टीसीएस), जागुआर मोटर्स जैसी कंपनियों का ही जिक्र होता है। टाटा ग्रुप को जमशेदजी टाटा, सर दोराब टाटा, जेआरडी टाटा, रतन टाटा और अब एन. चंद्रशेखरन जैसी महान शख्सियतों ने नेतृत्व दिया। 

टाटा ग्रुप के बाद बात करेंगे देश के एक अन्य उद्योग समूह की जिसके प्रमोटर पारसी हैं। हम बात कर रहे हैं वाडिया ग्रुप की। इसके चेयरमेन नुस्ली वाडिया ने अपने ग्रुप की एक महत्वपूर्ण कंपनी ब्रिटानिया इंडस्ट्रीज लिमिटेड का मैनेजिंग डायरेक्टर बना दिया था विनीता बाली को। नुस्ली वाडिया ने विनीता बाली में काबिलियत देखी और उन्हें अहम जिम्मेदारी सौंप दी। विनीता ने दिल्ली विश्वविद्यालय के लेडी श्रीराम कॉलेज से अर्थशास्त्र में स्नातक की डिग्री हासिल की थी। उन्होंने जमनालाल बजाज इंस्टीट्यूट ऑफ मैनेजमेंट स्टडीज से एमबीए भी किया। 

 उन्होंने चौदह वर्षों तक कैडबरी में भी काम किया, जहां उन्होने भारत और अफ्रीका में कंपनी की बाजार का विस्तार किया। वर्ष 1994 में, उन्होंने कोका कोला में विपणन निदेशक के रूप में कार्य किया और उसके बाद वे लैटिन अमेरिका के लिए विपणन उपाध्यक्ष नियुक्त हुईं। कोक में अपने नौ वर्षों के दौरान, उन्होने विपणन की रणनीति के अंतर्गत उपाध्यक्ष के रूप में काम किया। कहने का मतलब यह है कि विनीता बाली ने कोरपोरेट संसार में खूब मेहनत से अपनी जगह बनाई और वह शिखर तक गईं।

 टाटा तथा वाडिया की तरह ही गोदरेज उद्योग समूह के प्रमोटर भी पारसी हैं तथा मुंबई से हैं। गोदरेज ने अपने यहां आधी दुनिया को शिखर पर जगह देने में कसर नहीं छोड़ी। नायरिका होल्कर 12,000 करोड़ रुपये की कंपनी गोदरेज एंड बायस की मैनेजिंग डायरेक्टर बनने जा रही हैं। नायरिका ताले से लेकर रेफ्रिजरेटर तक बनाने वाली इस 125 साल पुरानी कंपनी में एग्जीक्यूटिव डायरेक्टर हैं। उन्हें जमशेद गोदरेज  के उत्तराधिकारी के तौर पर देखा जा रहा था।  जमशेद गोदरेज की भांजी हैं नायरिका। जमशेद दोगरेज ने उन्हें गुरु दक्षिणा देते हुए सलाह दी है कि वह फाइनेंस के मामले में कंजरवेटिव रुख अपनाएं और कंपनी के लिए अगले 125 साल की योजना बनाकर चलें। नायरिका ने 2017 में गोदरेज के बोर्ड को जॉइन किया था। उन्होंने अमेरिका को कोलाराडो कॉलेज से फिलॉसफी और इकनॉमिक्स में बीए करने के बाद ब्रिटेन की यूनिवर्सिटी कॉलेज ऑफ लंदन से एलएलबी  और एलएलएम  की डिग्री ली थी।

अब फिर लौटते हैं शीतल पेय बनाने वाली कंपनी रसना और उनके हाल ही में दिवंगत हुए चेयरमेन खंबाटा जी की। उनकी अखिल भारतीय दृष्टि थी। हालांकि वे अहमदाबाद से अपने बिजनेस को संभालते थे पर उन्होंने देश के अलग-अलग भागों में अपन संयंत्र चालू किये थे। खंबाटा की पहल पर कुछ साल रसना ने हैदराबाद में भी संयंत्र चालू किया था, इसे मिलाकर उनके समूह के उत्तराखंड, हिमाचल, हरियाणा और गुजरात सहित देश में कंपनी के कुल नौ संयंत्र हो गए थे। वे कहा करते थे कि वे सारे भारत के हैं और सारा भारत उनका है। वे अंत तक नए उदमियों को आगे बढ़ने के लिए प्रोत्साहित करते रहे। वे मानते थे कि अब  युवाओं को नौकरी की जगह कारोबारी बनने के बारे में सोचना होगा। उन्हें रोजगार देना होगा ना कि मांगने के संबंध में सोचना होगा।

(The author is an eminent bi-lingual writer and columnist. He is based in New Delhi)

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