Thursday, March 28, 2024

“गंडासा गुरू की शपथ” : ’रागदरबारी’ और ‘आधा गांव’ की क़तार की रचना

बनारस के पानी में ही किस्सागोई है। कुन्दन यादव सिर्फ़ बनारसी ही नहीं, बल्कि दास्तानगोई के उस्ताद भी हैं। उनके ताज़ा कहानी संग्रह की कहानियॉं लिखी नहीं, कही गयी हैं। वे अपनी कहानियों में बोलते बतियाते है। उन्हें पढ़ते हुए लगता है कि हम कहानी उनसे सुन रहे हैं। उनके नए कहानी संग्रह ‘गँड़ासा गुरु की शपथ’ की स्टाईल और कहन दोनो  ‘राग दरबारी’ वाली है। 

कुन्दन भारतीय राजस्व सेवा के अफ़सर हैं, तभी उन्हें सरकारी कामकाज में आम आदमी के उत्पीडन की फ़र्स्टहैण्ड जानकारी है।इसीलिए उनकी कहानियाँ आम आदमी का संवाद बनती है।तभी इन कहानियों में कंठस्थ होने का माद्दा बनता है। ‘गँड़ासा गुरु की शपथ’ में हास्य व्यंग्य में पगी कहानियाँ बतरस शैली में लिखी गयी है। व्यंग्य लेखन में ज्यादातर अनुभूति का उथलापन आ जाता है। पर कुन्दन के व्यंग्य में गहरी अनुभूतियों की रससिक्त संवेदना है। उनकी भाषा और व्यंग्य में ताज़गी है।कुन्दन कितने मजेदार, अध्ययनशील और तीव्र मेधा के हैं, यह इन बारह कहानियों से समझ में आता है।  

कुन्दन की कहानियों में बनारस बोलता है।रस खोलता है। बनारसी अख्खडपन, खिलदंडापन और लंठई यहॉं पूरी शिद्दत  से मौजूद है।संग्रह में बनारसी जीवन के रोजमर्रा के किस्से हैं। कुछ लोगों की हँसमुख  दास्तान है।आप बार-बार पढ़ेंगे तो हर बार अलग आनंद आएगा। कहानियाँ आमजन के सत्ता केन्द्र थाने, तहसील और समाज जीवन में महत्वपूर्ण दर्जी, नाई, हलवाई को केन्द्र में रख कर लिखी गयी हैं।लेकिन हर वक्त और दौर में प्रासंगिक हैं।यथार्थपरक और जनआधारित साहित्य के लिहाज से कुन्दन का ‘गँड़ासा गुरु’ ‘रागदरबारी’ और ‘आधा गांव’ की क़तार की रचना है।यह संग्रह भाषा, विषयवस्तु और समझ की रूढ़ियां तोड़ता है। 

‘गंडासा गुरू’ के ज्यादातर वाक्य अपने भीतर एक लतीफ़ा छुपाए रहते है। ‘रागदरबारी’ में आपको व्यंग्य ज्यादा मिलेगा, यहां हास्य। ये कहानियाँ आपको गुदगुदाती तो हैं ही, पर इन कहानियों का मकसद सिर्फ़ गुदगुदाना या मन बहलाना नहीं है। वह सामाजिक विद्रूपताओ और पाखंड पर गहरी चोट करती है। समाज जीवन की प्रवृत्तियों, परिस्थितियों का पूरी तन्मयता और बारीकी से बख़ान करती है। 

इन कहानियों में कथा भी है, समाज की विसंगतियों की व्यथा भी है। लोगों का व्यवहार भी है, परिवेश की प्रमाणिकता भी  है और अकबर, बीरबल विनोद भी है। यह क़िताब उनके लिए भी है जो साहित्यिक उपन्यास और कहानी नहीं पढ़ते।उम्मीद है उनमें भी ‘गँड़ासा गुरु’ पढ़ने में रूचि पैदा करेगा। संग्रह की ज्यादातर कहानियाँ बनारस के आसपास के परिवेश में रची बसी है। जो नहीं है उनके चरित्र बनारसी हैं। कुन्दन दरोगा के बेटे हैं।उनका बचपन थानों में बीता है। इसलिए थानों और पुलिसवालों का ब्यौरा अपनी पूरी नंगई के साथ उनकी कहानियों में है। कैसे रोजमर्रा के जीवन में पुलिसवाले हर किसी की ‘प्रापर फिजियोथैरेपी’ करने को उद्दत रहते हैं।‘कोतवाल राम लखन सिंह’,’देशभक्ति में फिजियोथैरेपी,,’गँडासा गुरू की शपथ’ लेखक के पुलिसिया ज्ञान और लोक से जुडाव की सूचना देती है।कहानियाँ थाने के आसपास के जीवन का प्रामाणिक संवेदनात्मक दस्तावेज बन पड़ी हैं। कुन्दन के पास एक अंतर्भेदी दृष्टि भी है। जो अपने समय में बड़े पैमाने पर पल रही पतनशील राजनैतिक संस्कृति को भेदकर उसे रेखांकित करती है ।

सिस्टम की संवेदनहीनता पर ये कहानियाँ झकझोरती हैं। तंत्र की बेअंदाजी पर वे चोट करती हैं। जीवन की रूढ़ियों, अंधविश्वासों, नेता-अफसर अंतर्संबंधों, सत्तालोलुपता, धनलिप्सा सब को कथा में पिरोते हुए उस पर कुंदन प्रहार करते हैं। वे सच्चे बनारसी हैं। सच्चा बनारसी वही है जो समूची दुनिया को ठेंगे पर रखे। कहीं भी पान खाने,थूकने का इंतजाम और कहीं भी विसर्जन की जगह ढ़ूंढ ले। इन कहानियों में आप चौतरफ़ा बनारस को सुनेंगे। उन पहलूओं को भी देख सकेंगे जो रोजमर्रा के जीवन में आपके सामने आते तो हैं। पर आपकी दृष्टि उन पर नहीं पड़ती। इन गल्पों की ख़ासियत ही यही है यह तात्कालिक तथ्यों पर लिखे गए हैं। 

संग्रह में किसी को कुछ न समझने वाले गँडासा गुरु, बच्चों को संवेदनशील संस्कार देने वाले डॉक्टर साहब, धंधे में नुकसान उठा पड़ोसी धर्म निभाने वाले टेलर मास्टर और मज़बूरी का नाम महात्मा गांधी पर असल ज़िंदगी में अमल करने वाले चौधरी साहब है। इन साधारण चरित्रों के जरिए असाधारण मानवीय सम्बन्धों को पूरी मार्मिकता के साथ कहा गया है। इन कहानियों को आज के कहानी शिल्प का ‘क्लासिक’कहा जा सकता है। उनके वर्णन की कला में ‘विटविन द लाइन्स’ पकड़ने की कोशिश हर कहीं है । इन कहानियों में काशी की लंठई की अभिव्यक्ति को भारतेन्दु हरिशचंद्र से लेकर काशीनाथ सिंह तक की कहानियों में देखा और महसूस किया जा सकता है। लेखक की बनारसी अक्खड़ व बेलौस चरित्रों की मानसिक बनावट, उनकी भाषा और व्यवहार पर बारीक नज़र है।

पुस्तक: गँडासा गुरु की शपथ

लेखक: कुन्दन यादव 

प्रकाशक: राजकमल प्रकाशन, नई दिल्ली

मूल्य: रु.225

हेमंत शर्मा हिंदी पत्रकारिता में रोचकता और बौद्धिकता का अदभुत संगम है।अगर इनको पढ़ने की लत लग गयी तो बाक़ी कई छूट जाएँगी।इनको पढ़ना हिंदीभाषियों को मिट्टी से जोड़े रखता हैं।फ़िलहाल TV9 चैनल में न्यूज़निर्देशक के रूप में कार्यरत हैं। 

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