Wednesday, June 18, 2025

हिंदुत्व के नाम पे हिंदुओं के विरोध में जुटे अमरीकी विश्वविद्यालय; हमारे ही उद्योगपति हैं प्रायोजक

एक डिजिटल कॉन्फ़्रेन्स कल से शुरू हो रही है। ये हिंदू धर्म के विरोध में हैं। हालाँकि कहा ये जा रहा है कि यह हिंदुत्व के ख़िलाफ़ है, हिंदू धर्म के नहीं पर अगर आप इस कॉन्फ़्रेन्स कि वेब्सायट को देखें (dismantlinghindutva.com) तो ये दोगलापन तुरंत स्पष्ट हो जाता है। 

ऐसा क्या है इस कॉन्फ़्रेन्स में जिससे में इतना उत्तेजित हूँ? हिंदुओं के ख़िलाफ़ षड्यंत्र कोई नई बात नहीं है। रोज़ का मामला है। पर इसपे ध्यान इसलिए जाता है क्योंकि उत्तरी अमरीका की कई प्रतिष्ठित विश्वविद्यालय इसको प्रायोजित कर रही हैं। इसके वक्ताओं पे भी ध्यान जाता है।सबसे विचिलित करने वाली बात ये है कि देश की कई बड़े उद्योगपति भी इसके पीछे हैं। 

पहले तो ये हिंदुत्व और हिंदू धर्म का फैलाया हुआ भ्रम समझ लें।ये लोमड़ी की तरह चालक वर्ग ये कह के उलझता है कि हम हिंदू धर्म के विरुध नहीं हैं। हम हिंदुत्व के विरुध हैं। ये हिंदुत्व क्या है? इससे इनका तात्पर्य ये है की जो हिंदुओं को सबसे ऊपर समझते हैं और जो अल्पसंख्यकों के प्रति दुर्भाव रखते हैं। वो लोग जो ब्राह्मणवादी और मनुवादी सोच रखते हैं। जो दलितों और स्त्रियों के ख़िलाफ़ दुर्भाव रखते हैं। 

पर इनकी वेब्सायट पे एक निगाह में स्पष्ट हो जाता है कि ये हिंदुत्व कि आड़ में हिंदू धर्म के विरोध में है। इनके निशाने पे rss और भाजपा है। ये हिंदूफोबिया फैला रहें है जब कि आज तक किसी हिंदू सूयसायड आतंकवादी या प्लेन हाइजैकर के विषय में नहीं सुना। किसी चौराहे पे किसी स्त्री पे कोड़े बरसाए गए हों ये भी नहीं सुना। 

जब जब भारतीय जनता पार्टी सत्ता में आती है, इन जंतुओं के दांत दिखने लगते हैं। पस्चिम जगत कह लें, वाम पंथी कह लें , ग्लोबलिस्ट कह लें, ईसाई धर्म के कट्टरवादी कह लें, इनके सीने पे साँप डोलने लगता है। फिर शुरू होता है ऐसा ही हमला। इसमें तथाकथित बुद्धजीवि, लुत्येन्स मीडिया, ऐनजीओ के साथ साथ अमेरिका और इंग्लंड के संसद में बैठे हुए प्रथिनिधि भी सक्रिय हो जाते हैं। उनके साथ ही सक्रिय हो जाते हैं भारत में बैठे हुए उनके टिड्डे। 

इसको समझना कोई मुश्किल गर्णित नहीं है। आप बस विचार भर करें कि बक़रीद पे छूट क्यों है और ओनम पे क्यों नहीं ; पहलू ओर अकलाख पे रुदाली और कमलेश तिवारी पे सन्नाटा क्यों, कठुआ और हापुर पे हाए तौबा और अंगिनित हिंदू लड़कियों के साथ हुए दुष्कर्म पे चुप्पी क्यों। आपको याद होगा इंदीयन इक्स्प्रेस ने उप्र में कोविड की दूसरी लहरी पे पहले पृष्ट पे शृंखला चलाईं थी। केरल रोज़ भारत को डुबो रहा है पर कानों पे जूं तक नहीं रेंग रही है। 

अब इस कॉन्फ़्रेन्स के वक्ताओं पे निगाह डाल लें। नंदिनी सुंदर हैं जो सिधार्थ वर्धराजन की पत्नी हैं जो द वाइर नाम की वेब्सायट चलते हैं। इसमें सिवाए मोदी सरकार के ख़िलाफ़ विष उगलने के अलावा कुछ नहीं होता। सलिल त्रिपाठी और टी एम कृष्णा हैं; क्रिस्टफ़र ज़फ़्फ़्रेलोट और आनंद पटवर्धन हैं जो इसी अजेंडा के सिपाही हैं। 

अब देखिए इन विश्वविद्यालयों की तरफ़ जिसमें कई भारतीय उद्योगपति जम कर पैसे की बरसात करते हैं। रतन टाटा, नारायण मूर्ती के लड़के रोहन मूर्ती, महिंद्रा और महिंद्रा के मालिक आनंद महिंद्रा इत्याद दसीयों लाखों डालर्ज़ का चंदा देते हैं। आज उनके नाम प्रयोजितो की सूची में है। दुःख का विषय है। 

अब किसी को इसकी परवाह नहीं है की जो हज़ारों बच्चे इन्हीं विदेशी शिक्षा संस्थानो में  अध्यन के लिए जाते हैं; जिनको पढ़ाने में इनके माँ बाप क़र्ज़ों में डूब जाते हैं; जो हिंदू धर्म में असीम विश्वास करते हैं उनको इस हिंदू फोबिया का शिकार होना  पड़ सकता है। या तो वो इस बहाव के साथ बहे या फिर करेयर शुरू होने से पहले ही ख़त्म। ये किस तरह की स्वतंत्र विचार धारा है। क्या ये तालिबानी सोच नहीं है? 

सच तो ये है की हिंदू धर्म अगर जीवित है तो वो भारत के बड़े शहरों में कम और इंटिरीअर में ज़्यादा है। भारत के गाँव भारत की आत्मा को बचा के रखे हुए हैं। जब तक ये सोच धड़क रही है, ऐसी कितनी भी कॉन्फ़्रेन्स करवा लो, ढेले का फ़र्क़ नहीं पड़ेगा। 

Read More

BJP’s 11 years at helm: Things which stand out

I was the youngest and Lucknow was where we lived. Alambagh, then viewed as the periphery of the city, smelt of violence at every...