Wednesday, April 24, 2024

होम हेयर कटिंग सेलून : “स्वेत स्वेत सब कुछ भलो,स्वेत भले नही केस । नारी रीझें न रिपु डरे, न आदर करे नरेस”

मूंड देना यानि साफ कर देना।शाब्दिक अर्थोँ में सर के बाल सफाचट कर देने की प्रक्रिया को मूंड देना कहते हैं। मगर इस शब्द का व्यवहारिक अर्थ बहुत व्यापक है। मैने बड़े बड़े आकाशपतियों और बाहुबलियों की कहानी सुनी है जो जीवन जगत में अपने बल-ऐश्वर्य का हवाला देते घूमते हैं, मगर घर लौटते ही मूंड दिए जाते हैं। अगले ही पल उनकी सारी श्री, संपत्ति और दिन भर का हिसाब किताब सब पत्नी के चरणों में होता है। मैं आमआदमी यानी मैंगोमैन हू्ं।शायद इसीलिए मेरे साथ ये शब्द अपने शाब्दिक अर्थ में ही इस्तेमाल हो गया। मैं आज सचमुच में मूँड़ दिया गया ।वीणा ने मेरे बाल काट दिए। लॉकडाऊन के चलते मेरे बढ़ते बाल सुमित्रानंदन पंत शैली के हो गए थे जिसे वीणा ने काट कर हवलदार स्टाईल का बना दिया।बचपन में मुहल्ले के बदमाशों को पकड़ कर पुलिस सिर पर चौराहा बना देती थी।बढ़ते बाल सिर पर बोझ से लग रहे थे।संक्रमण के डर से मैं अपने बाल काटने वाले कारीगर को बुला नहीं रहा था। सो कोई चारा नहीं था। इसलिए पत्नी से निवेदन किया और उन्होंने ये हाल बना दिया। पूर्वी उत्तर प्रदेश और बिहार में नाई लोग शर्मा लिखते है। मेरे बारे में भी अक्सर लोग भ्रम में रहते थे। जब मेरा विवाह तय हुआ तो कुछ विध्नसंतोषियो ने वहॉं तक खबर पहुँचाई कि वो नाई वाले शर्मा है।वो तो मेरा मामला मज़बूत था नहीं तो भाई लोगों ने काम लगा ही दिया था। बहरहाल आज वीणा ने अपने शर्मा होने को सार्थक किया। बाल काटने वालो से अपना रिश्ता बड़ा आत्मीय रहा है।

लेखक हेमंत शर्मा।

चाहे पढ़ते वक्त बनारस के नाई हों, नौकरी के वक्त लखनऊ के या अब दिल्ली के नाई हो। वजह नाई पेशेवर ढंग के किस्सागो होते हैं और मैं स्वभावत: क़िस्सागो हूँ। इसलिए पटरी बैठती है। पढ़ते वक्त शारदा नाई। लखनऊ में हफ़ीज़ और यहॉं लाल मोहन शर्मा। सब कैंची कंघी पकड़ते ही, दुनिया भर की खबरें और एक से बढ़कर एक किस्से सुनाते रहते है। इसमें शारदा जी का कोई मुक़ाबला नहीं था। लंका पर चाची की चाय की दुकान के सामने शारदा जी की बाल काटने की दुकान थी। शारदा जी के कुर्ते की जेब में दुनिया की सारी समस्याओं का हल होता था। ग़ौर वर्ण , लम्बी काया, वृषभ स्कन्ध, झक सफ़ेद कुर्ता और धोती, मुँह में पान, यह थी शारदा गुरू की पहचान।शारदा जी सम्पूर्णानन्द से लेकर कमलापति त्रिपाठी तक से जान पहचान थी। देश की सामाजिक राजनैतिक स्थिति पर हर वक्त भाषण पेलने को तैयार शारदा जी का ठिकाना लंका के गोरस स्टूडियो वाली विल्डिंग में था। अन्दर वो रहते थे। बाहर की तरफ़ उनकी दुकान थी। बीएचयू के ज़्यादातर छात्र नेता शारदा जी से चुनाव में जीत का मंत्र लेते थे। शारदा जी नाई थे पर सबको बताते थे कैसे आप छात्र संघ का चुनाव जीत सकते हैं।शारदा जी की दुकान के सामने एक बूढ़ी चाची की समोसे की दुकान थी। बुढ़िया चाची बड़ी बदमाश थी। लड़कों को मॉं बहन की गाली देती।पाणिनि के चौदह सूत्रों की तरह वह एक स्वर में धाराप्रवाह गालियाँ देती।बुढ़िया की गालियाँ ही उस दुकान का आकर्षण थी।लड़के उसके यहॉं समोसा खाने कम गाली सुनने ज़्यादा जाते थे।मॉं बहन की गालियां तो आशीर्वाद स्वरूप हर किसी को मिलती। किसी ने छेड़ा तो बात आगे तक जाती थी। हांलॉकि उनका समोसा भी बहुत अच्छा होता था।

बहरहाल शारदा जी से यह विषयान्तर हो गया। शारदा जी मेरे गुरू नही थे।पर अपने बालों का रख रखाव मैने उनसे ही सीखा।इस छोटी दुकान में उनका कोई सहायक नही था। वे खुद ही सबके बाल काटते थे। बड़े मनोयोग से मेरा एक एक बाल काटने में कोई डेढ़ घंटा लगाते। फिर वे उपचार बताते। आँवला शिकाकाई रात के ताँबे के पात्र मे भिगो कर रखे। सुबह लगाए फिर रीठे से धोएँ। शारदा जी के यहॉं बाल कटाने का नंबर लगता था।” का गुरू बाल कटी “।गुरू कहते “अभई दुई जने और हउअन। दो घंटा बाद आवा “शारदा जी बालों के चिकित्सक थे। वे तेल बनाने की सलाह भी देते। “अब देखा खोपड़ी पर रूखापन हौअ।गरी क तेल ल ओम्मन चंदन क तेल ,कपूर और रतनजोत मिला के धूप में रखा फिर ओके राति के लगा के सूत्तअ। ठीक हो जाईं।” शारदा जी सम्पूर्णानन्द के बाल काटते थे। इसलिए राजनैतिक रूप से बहुत जागरूक थे। वे कमलापति त्रिपाठी जी के भी बाल काट चुके थे।शारदा बाल काटते वक्त देश की समूची राजनीति का तियॉं पाँचा कर देते।जब मै नौकरी करने लखनंऊ आ गया तब भी मैं उनसे बाल कटवाने बनारस ही जाता था।अगर चार हफ़्ते नही गया को वे मुझे फ़ोन करते और कहते “बनारस नाहीं अईला का कि ओहरे कटवा लेलअ।”शारदा गुरूआ रोचक था। एक से एक क़िस्से लाता था।

एक बार विश्व हिन्दू परिषद ने शहरों के नाम बदलने का आन्दोलन छेड़ा। फ़ैज़ाबाद को अयोध्या , मुगलसराय को दीनदयाल नगर ,इलाहाबाद को प्रयागराज,लखनऊ को लक्ष्मण पुरी आदि आदि नाम करने की उनकी मॉंग थी। आन्दोलन तेज़ हो गया था क्योकि राज्य में भाजपा की कल्याण सिंह सरकार थी। शारदा गुरू मेरा बाल काट रहे थे। लक्ष्मण पुरी पर उनको एतराज़ था। मैने कहा इसमें एतराज़ क्यों? यह तो अंग्रेज़ों का रखा नाम है *लक नाऊ*। मूल नाम तो अवध था।शारदा बोले, “भईया आप कहॉं है। लखनऊ किसने बसाया था आपको मालूम है। सीतापुर में एक नाईयों की स्टेट थी।उसी के *लखना ,नाऊ* ने लखनऊ बसाया इसीलिए इस शहर का नाम *लखनऊ* पड़ा।” मैं न हंस पा रहा था न रो पा रहा था। चुपचाप शारदा जी को देख रहा था। वाह रजा! शारदा।शारदा जी का मुझ पर अपार स्नेह था। वे मेरी बारात मे भी गए थे। मेरी बारात में आने वालों के क़िस्से वे लोगों को बरसों सुनाते रहे। दुकान पर जाते ही मेरे लिए चाची के यहॉं से चाय मंगवाते। एक दफ़ा मेरा बाल काटते काटते शारदा जी ने चाय मँगायी। हमने पी। मैं चादर बॉंध के बैठा रहा। इतने में शारदा गुरू बोले तूं चाय पीयअ हम आवत हई। १० मिनट बीता १५ मिनट हुआ। आधा घंटा बीता तो शारदा जी आते दिखे। मैने पूछा कहॉं चले गए थे महराज। शारदा बोले चल गयल रहली निपटे ( यानी निवृत्त) होने। मुझे ग़ुस्सा आया। मुझे चादर लगा कर आधा बाल काट गुरूवा सरवा निपटे चल गयल*। पर यह शारदा जी की आदत थी। हो सकता है आपका आधा बाल काट शारदा बाहर चाय की दुकान पर लोगों से बहस में उलझ जाए कि वी पी सिंहवा बहुत पाखण्डी हौअ। आरक्षण के नाम पर लड़कन के मरवावत हौअ। एक बात ख़ास थी की नाई होते हुए शारदा जी वीपी सिंह की आरक्षण नीति के खिलाफ थे। इसलिए कि इसमें लड़के मारे जा रहे है। समाज मे टकराव बढ रहा है। इसे रूकना चाहिए।

आज शारदा होते तो उनका पहला हमला मेरे सफ़ेद बालों पर होता। वे बाल रंगने के ज़बर्दस्त हिमायती थे। उस वक्त मेरे कुछ बाल कान के पास से पकने शुरू ही हुए थे कि वे एक रोज़ वे कटोरा ब्रश लेकर आ गए।बाल रंगने। उन्हें रंगने से मैने मना किया तो उन्होन कोई रद्दी सा दोहा सुनाया “स्वेत स्वेत सब कुछ भलो,स्वेत भले नही केस । नारी रीझें न रिपु डरे, न आदर करे नरेस”। यानि सफ़ेद बाल से कोई फ़ायदा नाहीं हौअ।न स्त्री रीझती है न राजा प्रभावित होई।…..गुरू रंगवालअ।शारदा संस्कृत के दोहे भी सुनाते थे। अपनी बात के समर्थन मे कुछ भी गढ कर सुना देते। डी एन ए के अस्तित्व में आने से पहले शारदा यह बताते थे की हर व्यक्ति के बालों की बनावट अलग अलग होती है। उसकी संरचना भिन्न होती। पहचान अलग होती। वो एक बनावटी श्लोक सुनाते“मुण्डे-मुण्डे केश भिन्ना , कुण्डे -कुण्डे नवं पय:जातौ जातौ नवाचारा। नवा वाणी मुखे मुखे”यानी अलग अलग खोपड़ी पर अलग अलग बाल होते है। अलग अलग कुण्ड में पानी अलग अलग हेता है। विभिन्नजातियो में नवाचार अलग होते हैं। और भिन्न भिन्न मुहं में अलग अलग वाणी।शारदा गुरू अब नही है। उनकी दुकान आधुनिक मॉल हो गयी है। मेरे बाल पूरी तरह सफ़ेद हो गए है। अब शहरों में पॉंच सितारा सैलून है। पर शारदा गुरू जैसी आत्मीयता कहॉं? शारदा गुरु के साथ एक अजीब सा अपनापा था। आज भी जब उनकी दुकान वाली जगह के आगे से गुजरता हूं तो मन में कुछ कसमसाता सा है।आज जब वीणा मेरे बाल बना रही थी तो शारदा बहुत याद आए।

हेमंत शर्मा हिंदी पत्रकारिता में रोचकता और बौद्धिकता का अदभुत संगम है।अगर इनको पढ़ने की लत लग गयी, तो बाक़ी कई छूट जाएँगी।इनको पढ़ना हिंदीभाषियों को मिट्टी से जोड़े रखता हैं। फ़िलहाल TV9 चैनल में न्यूज़ निर्देशक के रूप में कार्यरत हैं।

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