दिल्ली के संसद मार्ग को बैंक स्ट्रीट भी कहा जाता है। यहां देश के लगभग सभी खास बैंकों के रीजनल हेडक्वार्र हैं। इनमें हर रोज हजारों मुलाजिम और कस्टमर आते हैं। अरबों रुपए का लेन-देन होता है। इधर ही है स्टेट बैंक की बिल्डिंग। यहां पर आज आम दिनों की तरह से कामकाज हो रहा है। ये गवाह है 24 मई, 1971 को हुए देश के सबसे सनसनीखेज बैंक घोटाले का। उस दिन सुबह दस बजे तक स्टेट बैंक के चीफ कैशियर वेद प्रकाश मल्होत्रा दफ्तर आ गए थे। तपती गर्मी से आए थे। वे पानी पीने और पसीना पोंछने के बाद अपनी जरूरी फाइलें देखने लगे थे। उन्हें क्या पता था कि कुछ समय के बाद उनके बैंक से 60 लाख रुपए का घोटाला हो जाएगा।
किसने किया था फोन
मल्होत्रा की लैंडलाइन पर दिन में 11 बजे से कुछ पहले एक फोन आता है। तब तक मोबाइल फोन को आने में लंबा समय था। दूसरी तरफ से जो शख्स बोल रहा था उसने अपना नाम पी.एन.हक्सर बताया। कहा-“मैं प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी का प्रधान सचिव बोल रहा हूं। बंगलादेश के एक सीक्रेट मिशन के लिए फौरन 60 लाख रुपए चाहिए।” इसके बाद उस शख्स ने मल्होत्रा से कहा- “ लो इंदिरा गांधी जी से बात कर लो।” अब इंदिरा गांधी की आवाज में किसी ने वही कहा जो पहले हक्सर कह चुके थे। मल्होत्रा को निर्देश दिया गया कि वह 60 लाख रुपया उस शख्स को सौंप दे जो एक कोड वर्ड ‘बांग्लादेश का बाबू’ कहे।’ मल्होत्रा ने अपनी सीट पर खड़े होकर जवाब दिया-‘जी माताजी।’ जान लें कि पीएन हक्सर (1913–1998) इन्दिरा गांधी के राजनीतिक सलाहकार थे। वे ऑस्ट्रिया और नाइजीरिया में भारत के एंबेसेडर भी रहे थे।
कहां दिए गए 60 लाख रुपए
मल्होत्रा ने इस छोटी सी बातचीत के बाद अपने मताहत डिप्टी चीफ कैशियर आर.सी. बतरा और कुछ अन्य स्टाफ को फौरन अपने पास बुलाया। उनसे कहा कि 60 लाख रुपए के बंडल बनाएं। पीएम आफिस से डिमांड आई है। तब 60 लाख रुपए आज के 100 करोड़ रुपए तो होंगे ही। बंडल बनाने के बाद मल्होत्रा ने लिखित औपचारिकताएं पूरी कीं। फिर वे दफ्तर की एंबेसडर कार से तय स्थान सरदार पटेल मार्ग पर निकल गए। उनके साथ उनका एक सहयोगी और था। वहां पर एक लंबे-चौड़े शख्स ने वही कोड वर्ड बोला। मल्होत्रा ने उसे नोटों से भरा बैग थमा दिया। उसने मल्होत्रा से कहा पीएम आफिस से पैसे की रसीद ले लो। मल्होत्रा वहां गए तो पता चला कि प्रधानमंत्री संसद भवन में है। तब उन्होंने हक्सर से संपर्क किया
जब हक्सर ने कहा कि उन्होंने तो कोई फोन किया ही नहीं। यह सुनते ही मल्होत्रा के पैरों के नीचे से जमीन खिसक गई।
मल्होत्रा तुरंत संसद मार्ग थाने में पहुंचे। उनकी पेशानी से पसीना आ रहा था। केस की रिपोर्ट लिखवाई। केस की गंभीरता को समझते हुए सहायक पुलिस अधीक्षक डी.के.कश्यप तथा इंस्पेक्टर हरि देव के नेतृत्व में एक टीम का गठन किया गया। ये दोनों दिल्ली पुलिस के धाकड़ अफसर थे। कश्यप और उनकी टीम ने देखते ही देखते उस टैक्सी की पहचान कर ली जिसमें रुस्तम सोहराब नागरवाला नाम का शख्स नोट लेने आया था। नागरवाला के बारे में बाद में तफ्तीश के दौरान पता चला कि वह भारतीय सेना में कैप्टन रहने के बाद गुप्तचर एजेंसी रॉ से भी जुड़ा रहा था।
इस बीच, पुलिस को टैक्सी ट्राइवर ने बताया कि नागरवाला को डिफेंस कॉलोनी में छोड़ा था। पुलिस को यह भी पता चला कि नागरवाला ने न्यू राजेन्द्र नगर के एक घर में जाकर एक सूटकेस लिया था। दिल्ली पुलिस उसके संभावित ठिकानों पर छापे मार रही थी। पुलिस को अपनी जांच में पता चल गया कि नागरवाला शाम को दिल्ली गेट की पारसी धर्मशाला में आ सकता है। यह ही हुआ। नागरवाला के वहां आते ही पुलिस ने उसे धर दबोचा। कश्यप ने उसे दो-तीन कसकर चांटे रसीद किए। उससे सारा पैसा बरामद भी हो गया।
संदिग्ध मौतें किसकी
पर कश्यप और नागरवाला की अकाल मौतों से यह मामला हमेशा-हमेशा के लिए संदिग्ध हो गया। कश्यप की 20 नवंबर 1971 को एक सड़क हादसे में मौत हो गई। उधर,नागरवाला को तिहाड़ जेल में तबीयत खराब होने के बाद भर्ती किया गया। उसकी तबीयत बिगड़ी तो उसे जीबी पंत अस्पताल में दाखिल किया गया। वहां उसकी 2 मार्च,1972 को मृत्यु हो गई। हरिदेव का 2019 में निधन हो गया था। वे चाण्क्यपुरी थाने के एसएचओ भी रहे थे। मल्होत्रा को डिसमिस कर दिया गया था। क्या उन्होंने इस सवाल का जवाब दिया होगा कि उसने किससे पूछकर 60 लाख रुपए फोन पर मिल निर्देश के बाद एक अनजान शख्स को थमा दिए थे ?
केन्द्र में जनता पार्टी की 1977 में सरकार आने के बाद पी. जगमोहन रेड्डी आयोग गठित किया गया नागरवाला बैंक घोटाले की गुत्थी सुलझाने के लिए। पर वह भी कोई ठोस निष्कर्षों पर नहीं पहुंच सका था।