आज स्मृति मांधाना को कौन नहीं जानता। ऑस्ट्रेल्या की धरती पे सबसे बड़ा स्कोर अपनी पहली ही पारी में जड्ना अभी तक तो किसी के बस की बात नहीं थी। और शतक भी कैसा: ताबड तोड़। १२७ रनों में २२ चौके और एक छक्का। पर इसपे आश्चर्य भी क्यों है। आख़िर उन्होंने अबतक चार टेस्टों में २९४ रन बनाया हैं जिसमें ५१ चोंके और एक छक्का सम्मिलित है, यानी की २१० रन सिर्फ़ मैदान के बाहर के शॉट।
स्मृति के शतक जड़ने पे उनकी ही टीम की हरलींन कौर देओल ने ट्वीट किया: ओ हसीना ज़ुल्फ़ों वाली।”। तो किसी दीवाने ने लिखा: “कहाँ हमारी बॉलीवुड की हेरोईन : हमेशा मेकप में और शानदार कपड़ों में लिपटी। और कहाँ ये सुंदरी। कोई मुक़ाबला नहीं है।”
एक यूटूब विडीओ है जिसे आप ज़रूर देखें। आपको एक नवयुवती नज़र आएगी जो बात बात पर हंस देती है और वाक्यपट्टूता में भी माहिर है।
चलिए पहले स्मृति की क्रिकेट की ही बात कर ली जाए। ऐसा तो है नहीं की ऑस्ट्रेल्या ने उनकी बल्लेबाज़ी का विश्लेषण ना किया हो। उन्होंने बारीकी से स्मृति की तकनीक का जायज़ा लिया हो गया। उनकी कमी को ढूँड़ा होगा। ये तथ्य भी उनकी समझ से दूर नहीं रहा होगा की यह लड़की धुआँधार खेलती है। सिर्फ़ ६२ एकदिवस्य मैच में २३७७ रन बना चुकी है जिसके २९६ चौके और २८ छक्के जड़ चुकी है। ऐसी लड़की के बल्ले से निकली बरसात को वो फिर भी ना रोक पाए।
अब हम उस पहलू पे निगाह डालते हैं जो दिल में एक तीस छोड़ जाता है। स्मृति अभी २५ की हुई हैं। अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट खेलते हुए उन्हें १० साल हो गए हैं। एक दो साल इधर उधर मिलाके विराट कोहली भी क़रीब क़रीब इतना ही अंतरराष्ट्रीय सफ़र तय कर चुके हैं। पर कोहली ने खेले हैं ९६ टेस्ट्स। स्मृति ने सिर्फ़ चार जिसमें तीन तो सिर्फ़ इस साल ही खेले हैं। दोनो का औसत हर फ़ॉर्मैट में क़रीब ५० का है। इससे ये तो बात ज़ाहिर होती है की भारतीय क्रिकेट बोर्ड ने महिला क्रिकेट के साथ सौतेला व्यवहार किया है। अगर अपने ख़ज़ाने में से कुछ पैसे महिला क्रिकेट के लिए निकाले होते, अगर टीवी स्पॉन्सर पे ज़ोर डालते की IPL के साथ महिला क्रिकेट का भी सजीव प्रसारण उन्हें करना है, तो महिला क्रिकेट अब तक रफ़्तार पकड़ चुकी होती।
हालाँकि स्मृति इसे भेदभाव नहीं कहती। वो कहती हैं की जब तक पुरुष क्रिकेट को देखने वालों की तादाद इतनी बड़ी होगी तब तक टीवी और प्रायोजक सभी उनके पीछे दोड़ेंगे। जिस दिन महिला क्रिकेट के भी चाहने वाले बड़ी संख्या में होंगे, वो भी रफ़्तार पकड़ लेगी।
उनके इस वक्तव्य पे भारतीय क्रिकेट बोर्ड की आलोचना करना ठीक नहीं लगता। आज क्रिकेट बोर्ड महिलाओं को भी सेंट्रल कॉंट्रैक्ट देता है । ये दीगर बात है की अगर विराट कोहली को दसयों करोड़ मिलते हैं तो स्मृति को सिर्फ़ ५० लाख सालाना।
ये भी सच है की आज प्रायोजक स्मृति जैसी महिला क्रिक्केटेर के आगे कॉंट्रैक्ट साइन करने की लाइन लगा के खड़े हैं। स्मृति खुद बाटा से लेकर हीरो जैसे प्रायोजकों के साथ जुड़ी हैं। ऐसी ज़ुल्फ़ें हों और संसिलक इंडिया उनसे दूर रहे ये कैसे हो सकता है। और तो और अब वित्तीय प्रायोजक जैसे एकुइटस बैंक भी उनके साथ जड़ गया है।
सीधी सी बात ये है की आज स्मृति महिलाओं के लिए प्रेरणा का स्त्रोत हैं। भारत के क़स्बों और छोटे शहरों में लाखों लड़कियाँ नए नए सपने संजो रहीं है। वो भी नौकरी करना चाहती हैं। वो भे फ़ेम और पैसा दोनो चाहती है। ये सपने उनको बरसो की ज़ंजीरों जो तोड़ने में मदद करेंगे। उनके प्रियाजन भी उनकी महत्वकांशयों को बांधने की कोशिश नहीं करेंगे। भारत में ६६२ मिल्यन महिलाएँ हैं। अगर वो भी पुरुषों के साथ कंधा से कंधा मिला के चलेंगी तो सोचिए देश का कैसा कायाकल्प होगा।
स्मृति ने नौ साल की उमर में, जब लड़कियाँ बार्बी डॉल में उलझी होती हैं, क्रिकेट के मैदान में ट्राइयल के लिए उतरी। ग्यारह वर्ष की अवस्था में वो वेस्ट ज़ोन की अंडर १९ टीम का हिस्सा थी। पंद्रह वर्ष में वो भारत का प्रतिनिधित्व कर रहीं थी। उन्होंने एक दोहरा शतक भी घरलू क्रिकेट में जड़ा जो राहुल द्रविड़ द्वारा दिए गए बल्ले की बदोलत बना था। उनके पिता और उनके भई दोनों ज़िला लेवल पर क्रिकेट खेल चुके हैं।
चाहे वो सानिया हो या साइना, सिंधु हो या स्मृति, ये सभी भारत का नक़्शा बदलने वाला काम कर रही हैं। अगर भारतीय महिलाओं में भी आकांक्षा दौड़ उठी, तो इस देश को कोई नहीं रोक सकता। महिला क्रिकेट को कम से कम में तो अब से नज़रंदाज़ नहीं करूँगा।