Saturday, April 27, 2024

विदाउट फियर- दि लाइफ एंड ट्रायल आफ भगत सिंह

राजधानी दिल्ली से सटे गाजियाबाद शहर में एक सड़क का नाम दुर्गा भाभी मार्ग है. हो सकता है कि नौजवान पीढ़ी को दुर्गा भाभी के संबंध में कम या कतई जानकारी न हो. वह शहीद भगत सिंह की परम सहयोगी थीं. दुर्गा भाभी, (जिनका पूरा नाम दुर्गा देवी वोहरा था) ने एक बार पत्नी बनकर भगत सिंह को पुलिस से बचाया था. उन्हीं को लेकर भगत सिंह और उनके साथी सुखदेव में तनावपूर्ण संबंध भी पैदा होने के दावे किए जाते हैं.

भगत सिंह पर लगे आरोप कितने ठोस

वरिष्ठ पत्रकार और लेखक कुलदीप नैयर ने भगत सिंह के जीवन पर गहन अध्ययन किया था. उनकी अंतिम पुस्तक भगत सिंह पर ही आई थी. नाम था विदाउट फियर- दि लाइफ एंड ट्रायल आफ भगत सिंह. उसमें उन्होंने भगत सिंह और सुखदेव के संबंधों में तनाव की वजहों का निर्भीकता से खुलासा किया था. आमतौर पर हमारे यहां शहीद भगत सिंह पर रत्तीभर भी नकारात्मक बात लिखी, कही,सुनी नहीं जाती. कुलदीप नैयर दावा करते थे कि भगत सिंह के साथी सुखदेव इस बात से नाखुश थे कि भगत सिंह और दुर्गा भाभी के बीच घनिष्ठता बढ़ती जा रही थी.

बकौल कुलदीप नैयर एक बार सुखदेव ने भगत सिंह को साफ शब्दों में कहा था- “तुम क्रांति का हिस्सा नहीं हो सकोगे क्योंकि अब तुम एक महिला के कारण रास्ते से भटक गए हो.” जाहिर है, यहां पर सुखदेव का संकेत दुर्गा भाभी की तरफ ही था. कुलदीप नैयर की किताब की बिजनेस स्टैंडर्ड में वरिष्ठ संपादक ए.के. भट्टाचार्य ने समीक्षा के दौरान साफ लिखा था भगत सिंह के किसी महिला से संबंधों को कुलदीप नैयर ने उठाया पर वे उस तरफ कोई ठोस साक्ष्य रखने में नाकाम ही रहे. यह समीक्षा 14 जून, 2013 को छपी थी.

क्यों बनी भगत सिंह की पत्नी

कैसे और क्यों बनना पड़ा था दुर्गा भाभी को भगत सिंह की पत्नी? भगत सिंह ने अपने क्रांतिकारी साथी राजगुरु के साथ मिलकर 17 दिसंबर, 1927 को लाहौर में गोरे पुलिस अफसर जे.पी. सांडर्स की हत्या की. उसके बाद वे मौका-ए-वारदात से फरार हो गए. पंजाब पुलिस उनकी गिरफ्तारी के लिए दबिश मारने लगी. सारे लाहौर को घेर लिया गया. चप्पे-चप्पे पर पुलिस. तब भगत सिंह के साथियों ने तय किया कि दुर्गा भाभी को भगत सिंह की पत्नी बनाया जाए. दुर्गा भाभी ने इस मिशन को पूरा करने की जिम्मेदारी उठाई. दुर्गा भाभी तय जगह पर पहुंची. वहां पर भगत सिंह थे. तब उनकी गोद में उनका तीन साल का पुत्र सव्यसाची भी था.

तब भगत सिंह एंग्लो इंडियन लूक में दुर्गा भाभी के साथ लाहौर से निकले थे. वे पुलिस की पैनी नजरों से बचने के लिए विवाहित इंसान बनने की कोशिश में सफल रहे. दुर्गा भाभी इस दौरान उनकी पत्नी बनने का रोल कर रही थीं. उनके साथ सुखदेव भी थे. कुछेक जगहों पर पुलिस ने उन्हें रोका भी. लेकिन, फिऱ जाने दिया. वे लाहौर रेलवे स्टेशन से निकल गए.

कौनथींदुर्गाभाभी

दुर्गा भाभी का जन्म सात अक्टूबर 1907 को पंडित बांके बिहारी के यहां हुआ. इनके पिता इलाहाबाद कलेक्ट्रेट में काम करते थे. उनका छोटी आयु में ही विवाह लाहौर के भगवती चरण बोहरा के साथ हो गया. इनके ससुर शिवचरण जी रेलवे में ऊंचे पद पर तैनात थे. भगवती चरण बोहरा राय साहब का पुत्र होने के बावजूद अंग्रेजों की दासता से देश को मुक्त कराना चाहते थे. वर्ष 1920 में पिता जी की मृत्यु के पश्चात भगवती चरण वोहरा खुलकर क्रांति में आ गए और उनकी पत्‌नी दुर्गा भाभी ने भी पूर्ण रूप से सहयोग किया.

मार्च 1926 में भगवती चरण वोहरा व भगत सिंह ने संयुक्त रूप से नौजवान भारत सभा का प्रारूप तैयार किया और रामचंद्र कपूर के साथ मिलकर इसकी स्थापना की. कहते हैं कि दुर्गा भाभी का काम साथी क्रांतिकारियों के लिए राजस्थान से पिस्तौल लाना व ले जाना था. चंद्रशेखर आजाद ने अंग्रेजों से लड़ते वक्त जिस पिस्तौल से खुद को गोली मारी थी उसे दुर्गा भाभी ने ही लाकर उनको दी थी.

भगत सिंह को फांसी के बाद दुर्गा भाभी

भगत सिंह को 23 मार्च, 1931 में फांसी राज गुरु और सुखदेव के साथ फांसी हो जाती है. उनका संगठन बिखर सा गया. उसके बाद दुर्गा भाभी ने 1940 में लखनऊ के कैंट इलाके में एक बच्चों का स्कूल खोला. उसे वह दशकों तक चलाती रहीं. दुर्गा भाभी 1970 के दशक तक लखनऊ में ही रहीं. फिर उन्होंने अपने परिवार के कुछ सदस्यों के साथ गाजियाबाद में शिफ्ट कर लिया.

उनसे इस लेखक को भी 1992 में मुलाकात करने का मौका मिला. तब वहां पर राजधानी की सामाजिक संस्था शहीद भगत सिंह सेवा देल के मुख्या जितेन्द्र सिंह शंटी और कुछ लोग भी थे. जाहिर है, दुर्गा भाभी काफी वृद्ध हो चुकी थी. गुजरे दौर की यादें धुंधली पड़ने लगी थीं. पर, भगत सिंह का जिक्र आते ही फिर वह उन्हीं दिनों में वापस चली गईं थी . उन्होंने उस सारे घटनाक्रम को सुनाया जब वह बनीं थी भगत सिंह की पत्नी.

दिल्ली के तब के मुख्यमंत्री मदन लाल खुराना भी दुर्गा भाभी से मिलने उनके गाजियाबाद स्थित आवास में 1995 में गए थे. खैर, दुर्गा भाभी का 1999 में गाजियाबाद में निधन हो गया था. उसके बाद उनके राजनगर स्थित घर के पास ही दुर्गा भाभी मार्ग और पार्क बने. दुर्गा भाभी की मृत्यु के बाद उनक परिवार कनाडा जाकर बस गया था.

(साभार theprint)

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