Wednesday, April 24, 2024

हिन्दू धर्म के मर्म को समझिए और हिन्दुत्व पर कृपा कीजिए

हिन्दुत्व को लेकर जंग छिड़ी है। ‘हिन्दुत्व’ राजनीति के दुश्चक्र में फंस गया है। एक तरफ़ हाहाकारी हिन्दुत्ववादी हैं और दूसरी ओर “मैं हिन्दू हूं पर हिन्दुत्ववादी नहीं के झन्डाबरदार। फिर कोई खुर्शीद साहब आते हैं और हिन्दुत्व को ‘बोकोहराम’ बता जाते हैं। बोकोहराम जैसे जघन्य और नृशंस संगठन की तुलना हिन्दू धर्म से करना अपनी जाहिलियत का ऐलान ही है। कभी कोट के ऊपर जनेऊ पहनने वाले राहुल गांधी हिन्दुत्व को हिंसा और साम्प्रदायिकता का औजार बता देते हैं। दरअसल हिन्दू और हिन्दुत्व अद्वैत हैं। हिन्दुत्व अपने आप में कोई धर्म, पंथ या वाद नहीं है। जो ‘हिन्दुइज्म’ के जरिए हिन्दुत्व को समझने की कोशिश करते हैं, उन्हीं से यह बखेड़ा खड़ा हुआ है। वे गलती कर रहे हैं। हिन्दुत्व सिर्फ ‘हिन्दू-पन’ है। यानी हिन्दू के गुणों और लक्षणों का संग्रह।

हमारी परम्परा में चार्वाक ईश्वर के अस्तित्व को ही नहीं मानता था।उसने वर्तमान में जीने और कर्ज लेकर घी पीने का एलान किया था। हमने उसका सिर नहीं कलम किया।बृहस्पति के इस शिष्य को ऋषि का दर्जा दिया। कबीर पत्थर को पूजने (मूर्तिपूजा) के खिलाफ खड्गहस्त थे। हमने उन्हे हिन्दू भक्त माना। तुलसी सगुण उपासक थे। पर उन्होंने लिखा ‘पद बिन चले, सुनै बिन काना’ यानी ईश्वर बिना पैर के चलता और बिना कान के सुनता है। यानी वह निर्गुण है। एक ही बिस्तर पर मेरी सनातनी दादी ‘अतंकाल रघुवरपुर जाई’ गाती थी। तो आर्यसमाजी दादा ‘अतंकाल अकबरपुर (फैजाबाद पैतृक गांव) जाई’ का उद्घोष करते थे। एक मूर्ति पूजा करता दूसरा उसका विरोध। पर दोनों हिन्दू थे। एक ही छत के नीचे कोई राम भक्त कोई शिव भक्त कोई कृष्ण भक्त तो कोई केवल शक्ति की उपासना करता था। पर सब हिन्दू थे। एक दूसरे के परस्पर विरोधी पर कहीं कोई टकराव नहीं। यह है हिन्दू धर्म का मूल। हिन्दू धर्म की यही संवादप्रियता के कारण ही भारतीय इस्लाम और भारतीय ईसाई यहां वैसे नहीं हैं जैसे अपने मूल रूप में अरब और पश्चिम में हैं। शायद इसीलिए संघ प्रमुख मोहन भागवत ने भी कहा कि भारतीय मुसलमान और हिन्दुओं का ‘डीएनए’ एक हैं। 

धर्म तो ‘हिन्दू’ है, जिसमें आस्तिकता की भी जगह है और नास्तिकता की भी। इसमें मूर्ति के मानने वाले भी हैं। मूर्ति को न मानने वाले भी हैं। द्वैत-अद्वैत और सगुण-निर्गुण को मानने वाले भी हैं। कुछ राम को मानते हैं तो कुछ केवल शिव को। कुछ राधा-कृष्ण के ही अनुयायी है। धर्म के व्यापक फलक में सनातनी भी हिन्दू हैं। आर्य समाजी भी और ब्रह्म समाजी भी। ऐसा विशाल और व्यापक धर्म दुनिया में नहीं है।

तो फिर हिन्दुत्व क्या है? क्या हिन्दुत्व कोई ऐसा दर्शन है? जिसमें हिंसा है? टकराव है? आतंक है? क्या बजरंग दल और श्री राम सेना की सोच हिंदुत्व है? क्या हिंदुत्व प्रेमी जोड़ों पर हमला है? पहनने ओढ़ने पर सामाजिक पुलिसिंग है? क्या ‘लव जिहाद’ के नाम पर आन्दोलन हिन्दुत्व है? घर वापसी हिन्दुत्व है? वैलेंटाइन-डे का डंडे से मुकाबला हिन्दुत्व है? 

प्राय: कट्टरता को नव राष्ट्रवादी हिन्दुत्व का लक्षण मान रहे हैं। इस शब्द का लगातार नकारात्मक प्रयोग हो रहा है। एक पवित्र शब्द का अर्थ ऐसे गिरा कि इस शब्द ने अपनी अर्थवत्ता ही खो दी। धारणा में हिन्दुत्व के नाम पर एक आक्रामक लठैत समाज खड़ा हो गया, जिसे कोई आलोचना बर्दाश्त नहीं है।

सुप्रीम कोर्ट ने कहा- “हिन्दुत्व एक जीवन शैली है। धर्म नहीं है। न पंथ। उसका मतलब है हिन्दूपन। जिसमें कई पूजा पद्धति शामिल हैं।”शब्द भी ठीक वैसे ही बना है। जैसे मधुर-मधुत्व। सुन्दर-सुंदरत्व। स्त्री-स्त्रीत्व। बंध-बंधुत्व, बुद्ध-बुद्धत्व, गुरु-गुरुत्व, मनुष्य-मनुष्यत्व होता है। वैसे ही हिन्दू-हिन्दुत्व होता है। उसमें गड़बड़ की अंग्रेजी शब्द ‘हिन्दुइज्म’ ने। जिसका अनुवाद अंग्रेजीदां मित्रों ने हिन्दुत्व कर लिया।हिन्दुत्व शब्द का सबसे पहले इस्तेमाल बंकिमचन्द्र के आनंदमठ में हुआ था। इसी के बाद उन्हीं के अनुयायी चंद्रनाथ बसु ने 1892 में इस शब्द का इस्तेमाल अपनी किताब में किया।बाद में सावरकर ने इसे राजनैतिक विचारधारा से जोड़ा।

नासमझी दोनों तरफ है। जो हिन्दुत्व में बोकोहराम जैसी नृशंसता देख रहे हैं। उन्हें हिन्दू धर्म के बारे में कुछ नहीं पता। वे मूढ़ हैं। वोट की खातिर वो ऐसा कर रहे हैं। सच यह है कि हिन्दू धर्म न किसी एक किताब से जुड़ा है। न किसी एक धर्म प्रवर्तक या भगवान से। दुनिया का इकलौता धर्म है जहाँ से आप कोई धार्मिक पुस्तक या भगवान निकाल लें तो भी बग़ैर ख़तरे के धर्म बना रहेगा। 

धर्म तो हिन्दू भी नहीं है। वह सनातन है। हिन्दू उसके मानने वाले हैं। हम सब सनातनी हिन्दू हैं। जो अपने धर्म में अटूट आस्था रखते हैं। दूसरे के धर्म की उतनी ही इज्जत करते हैं। हिन्दू आत्मा के अमरत्व में विश्वास करता है। पुनर्जन्म और कर्मफल में भरोसा करता है। हिन्दू का धर्म ही उसे वह ताकत देता है कि वह अधर्म से निपट सके। प्रतिशोध और प्रतिक्रिया की कायर हिंसा के बल पर नहीं। अपनी आस्था, विचार, अहिंसा और अपने धर्म की अक्षुण्ण शक्ति पर क्योंकि वह हिन्दू है। हिन्दू होना अपने और अपने भगवान के बीच सीधा सम्बन्ध रखना है। हिन्दू को किसी मुल्ला, पोप, आर्कबिशप या महंत के जरिए उस तक नहीं पहुंचना होता है। हिन्दू धर्म इस बात की पूरी स्वतंत्रता देता है कि कोई अपना आराध्य, पूजा पद्धति, जीवन शैली अपनी आस्था के अनुसार चुन सकता है। दूसरे धर्मों में जो बंधन है। वैसा कोई बंधन हिन्दू धर्म नहीं लगाता। वह आत्मा को अच्छेद्य, अशोष्य, अक्लेद्य और सनातन मानता है।

आप वेद में भी विश्वास कर सकते हैं। उपनिषद् में भी भरोसा कर सकते हैं। रामायण को भी मान सकते हैं। गीता को ही अपना धर्म ग्रन्थ मान सकते हैं। उपनिषद भी एक नहीं एक सौ आठ हैं। महापुराण भी अठारह हैं। किसी हिन्दू होने के लिए गीता को भी बाइबिल, कुरान या गुरुग्रंथ साहिब की तरह अपने धर्म की पहली और अंतिम पुस्तक मानना अनिवार्य नहीं है। हिन्दू धर्म में सगुण और निर्गुण भक्ति की भी एक लंबी और अनंत जीवनदायी परंपरा है। भक्त कवियों ने गुरु का होना अनिवार्य माना है। लेकिन गुरु को सब कुछ मानने वाले कबीर ने भी कह दिया कि गुरु की करनी गुरु जाएगा, चेले की करनी चेला। उसकी करनी वह भुगतेगा और तेरी करनी तू। इसलिए अंतिम सत्य करनी है और उसका फल भुगतना है। 

आदि शंकराचार्य भी जब केरल के कलाड़ी गांव से आदि शंकराचा और जैन मत के सामने सनातन धर्म की पुर्नस्थापना करने निकले थे तो उनके साथ लाखों कारसेवक नहीं थे जिन्हें बौद्ध स्तूपों और जैन मंदिरों को धराशायी करना था। उनके साथ उनका धर्म था जिसे उनने अपने ज्ञान और तप से स्थापित किया। शंकराचार्य ने चार पीठों की स्थापना की लेकिन यह नहीं कहा कि यह पीठ उस पीठ से ऊंची या बड़ी है। उन्होने चार शंकराचार्य बैठाए लेकिन किसी एक के अधीन तीन को नहीं किया। किसी भी शंकराचार्य को अधिकार नहीं दिया कि अपने धाम के लोगों के लिए धर्मादेश निकाल सकें। जो सभी हिन्दुओं के लिए बाध्यकारी हो। अपने धर्म और समाज की परंपरा में ही शंकराचार्य ने वैदिक सनातन धर्म को देखा। सो हिन्दू धर्म के मर्म को समझिए और हिन्दुत्व पर कृपा कीजिए। हिंदुत्व से अधिक वृहद, उदार और सर्व समावेशी विचारधारा दूसरी नहीं मिलेगी। 

यही वजह है कि यूनान, मिस्र, रोमां सब मिट गए जहां से, बाकी मगर है अब तक नामोनिशां हमारा।

हेमंत शर्मा हिंदी पत्रकारिता में रोचकता और बौद्धिकता का अदभुत संगम है।अगर इनको पढ़ने की लत लग गयी तो बाक़ी कई छूट जाएँगी।इनको पढ़ना हिंदीभाषियों को मिट्टी से जोड़े रखता हैं।फ़िलहाल TV9 चैनल में न्यूज़निर्देशक के रूप में कार्यरत हैं। 

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