Thursday, May 2, 2024

कौन हैं ये मौलाना जिससे मोहन भागवत खुद मिलने पहुँचे? 

मौलाना उमेर इलियासी कौन हैं? आरएसएस के अध्यक्ष मोहन भागवत की गुरुवार को उमेर अहमद इलियासी से मुलाकात के बाद उनके बारे में जानने वालों की तादाद चक्रवृद्धि ब्याज की तरह से बढ़ी है। ऑल इंडिया मुस्लिम इमाम ऑर्गेनाइजेशन के सदर मौलाना उमेर अहमद इलियासी इंडिया गेट से लगभग सटी गोल मस्जिद के इमाम हैं। वे इस्लाम के विद्वान तो हैं ही। बड़ी बात ये है कि उन्होंने अन्य धर्मों का भी गहन अध्ययन किया हुआ है। उनके जीवन का अटूट हिस्सा हैसर्वधर्म समभाव। वे सब धर्मों का सम्मान करने में यकीन करते हैं।

मोहन भागवत के गोल मस्जिद में आने पर हैरान होने वालों को शायद मालूम ना हो कि इसी मस्जिद में श्रीमती इंदिरा गांधी उस दौर में भी आती थीं जब वह देश की प्रधानमंत्री थीं।

 हर भूखे को रोटी

तब इस मस्जिद के इमाम मौलाना जमील इलियासी थे। वे मौलाना उमेर अहमद इलियासी के वालिद थे। उन्हें इंडिया गेट का फकीर भी कहा जाता था। शायद इसलिए क्योंकि गोल मस्जिद इंडिया गेट से चंद कदमों की दूरी पर है।  उन्होंने गोल मस्जिद में हरेक फकीर या भूखे इंसान के लिए भोजन की व्यवस्था की रिवायत शुरू की थी। उसे मौलाना उमेर इल्यासी ने अपने वालिद के 2010 में इंतकाल के बाद आगे बढ़ाया।

 कृष्ण वंशज मौलाना इलियासी

मौलाना उमेर इलियासी साफ कहते हैं कि उनके पुऱखे हिन्दू थे। वे तो यहां तक कहते हैं कि वे भगवान कृष्ण के वंशज हैं। उनका परिवार करीब दो –ढाई सौ साल पहले इस्लाम स्वीकार कर चुका है। वे मानते हैं कि इस्लाम का रास्ता सच्चाई, अमन और भाई चारे की तरफ लेकर जाता है। इस्लाम में किसी के लिए कोई नफरत का भाव नहीं है। इस्लाम समता के हक में खड़ा होता है। मौलाना उमेर इलियासी की स्कूली शिक्षा पंडारा रोड के सरकारी स्कूल में हुई। वे स्कूली दिनों में क्रिकेट के बेहतरीन खिलाड़ी थे। बैटिंग और फिल्डिंग करने में उन्हें अच्छा लगता था। उन्होंने इंडिया गेट में खूब क्रिकेट खेली है। पर उम्र बढ़ी तो उनका रास्ता बदल गया। पिता मौलाना जमील इलियासी ने उन्हें अपने साथ जोड़ लिया। उन्हें अपने उत्तराधिकारी के रूप में प्रशिक्षित किया।


लेखक मौलाना उमेर इलियासी को अपनी किताब “गांधी की दिल्ली” भेंट करते हुए। 

गांधी से प्रभावित मौलाना

मौलाना उमेर इलियासी की शख्सियत पर महात्मा गांधी का असर साफ दिखाई देता है। वे कहते हैं कि गांधी जी उनके गुरुग्राम के गांव घसेरा के पुश्तैनी घर में 19 अगस्त, 1947 को आए थे। वहां पर उनका मौलाना उमेर के दादा चौधरी मुनीरउद्धीन साहब और सैकड़ों लोगों ने गर्मजोशी से स्वागत किया था। गांधी जी ने गांवों वालों को हिदायत दी थी कि वे पाकिस्तान नहीं जाएंगे। गांव वालों ने उनकी बात मानी थी। मौलाना उमेर इलियासी राजघाट में होने वाले सर्वधर्म सम्मेलनों में लगातार पहंचते हैं। बहुत प्रखर वक्ता हैं। वे जब कुरआन के साथ गीता और बाइबल से भी उदाहरण देकर अपनी बात रखते हैं तो श्रोतागण मंत्रमुग्ध हो जाते हैं।

 मुस्कराते हुए कहते हैं कि वे तो सबसे मिलते हैं। मोहन भागवत जी से पहले भी मिल चुके हैं।  मस्जिद सबके लिए है। यहां पर सबका स्वागत है।  वे कहते हैं कि भारत में शांति के लिए वे कुछ भी कर सकते हैं। उनकी इसी सोच का नतीजा है कि गोल मस्जिद में ईद पर आलोक सज्जा होती है और दिवाली पर भी।

 कभी रमजान के महीने में गोल मस्जिद में जाकर देखिए। यहां पर तब कारों की कतार लगी होती है। उनसे गैर- मुस्लिम  मर्द-औरतें निकल रहे होते हैं। वे कारों में रोजेदारों के लिए फल, खजूर, मिठाई, पानी के पैकेट वगैरह लेकर आ रहे होते हैं। इधर रमजान के दौरान रोजा खुलवाने की जिम्मेदारी आसपास के हिन्दू परिवार लेते हैं। माहे रमजान से दो-तीन हफ्ते पहले ही लोग बुकिंग करवा लेते हैं कि वे किस-किस दिन रोजा खुलवाएंगे। रोज करीब 150-175 रोजेदार यहां पर अपना रोजा खोलते हैं। इनमें कनॉट प्लेस,मंडी हाऊस, बंगाली मार्केट वगैरह में काम करने वाले पेशेवरों से लेकर सरकारी बाबू रहते हैं।

 मौलाना इलियासी हर साल कनाडा जाते हैं। वहां उनके दो पुत्र सपरिवार रहते हैं।

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